Saturday, March 19, 2011

सूखी होली खेलें, जल और प्रकृति को बचाएं

जल के बिना जीवन असंभव है। यह हम सभी जानते हैं इसके बाद भी जल का जमकर दुरुपयोग करते हैं। होली भी ऐसा ही मौका है जब सबसे ज्यादा जल की बर्बादी होती है। होली त्योहार प्रतीक है श्रृंगारित प्रकृति के स्वागत करने का। जल का दुरुपयोग कर हम इस पवित्र त्योहार का अर्थ ही बदल देते हैं क्योंकि जल के अभाव में प्रकृति का श्रृंगार ही अधूर होगा। इस होली पर हम संकल्प लें कि सूखी होली खेलकर अपने नैतिक कर्तव्यों का पालन करेंगे तथा जल के दुरुपयोग पर रोक लगाएंगे। हमारे धर्मग्रंथों में भी जल के महत्व का वर्णन मिलता है। ऋग्वेद में वर्णित जल के महत्व का वर्णन इस प्रकार है-

जीवन का दूसरा नाम जल है। जल नहीं होगा तो जीवन समाप्त हो जाएगा। यह सृष्टि और इस सृष्टि के सबसे सुंदर रूप अर्थात मनुष्य का निर्माण भी जल के सम्मिश्रण से हुआ है। पंचमहाभूत जिनसे सृष्टि और हम बने हैं, उनमें जल प्रमुख है। धरती, आकाश, वायु, अग्नि और जल में केवल जल को ही जीवन की संज्ञा दी गई है। धरती पर भी पचहत्तर फीसदी से ज्यादा जल है और मनुष्य के शरीर में भी सत्तर फीसदी से ज्यादा जल की ही सत्ता है। हम भोजन के बगैर जीवित रह सकते हैं किंतु जल के बगैर जीवन की परिकल्पना संभव नहीं है।

जल ही है जिसकी सत्ता धरती से लेकर आकाश तक है। धरती के भीतर भी जल है और आकाश से भी वह अमृत के रूप में बरसता है। समुद्र मंथन की कथा जिसका लक्ष्य अमृत पाना था, जल से ही जुड़ी है। यही कारण है हमारे धर्मग्रंथ एक कुएं के निर्माण का फल सौ अश्वमेध यज्ञों पर भारी बताते हैं। आइए इस होली पर जल का संरक्षण करें और सूखी होली खेलकर दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करें।


या आपो दिव्या उत वा स्रवन्तिखनित्रिमा उत वा या: स्वयंजा:।

समुद्रार्था या: शुचय: पावका-स्ता आपो देवी रिह मामवंतु॥

ऋग्वेद- 7.49.2
जो जल आकाश से आता है जो जल धरती पर बहता है, जो जल खोदने से मिलता है। अथवा वह जो स्वयं फूट पड़ा (झरना) है। समुद्र के लिए प्रस्थान करने वाली पवित्र जल की देवी इस धरती पर हमारी रक्षा करें।

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