Sunday, March 25, 2012

चंबल में दशकों से है पीने के साफ पानी की दरकार

Author: 
दिनेश शाक्य
Source: 
जनसत्ता, 23 मार्च 2012
लोक समिति के अध्यक्ष सुल्तान सिंह का कहना है कि वैसे तो चंबल में कई अहम समस्याएं हैं लेकिन इंसानी जीवन के मद्देनजर अगर सरकार अपने वादे के मुताबिक उसे पीने का साफ पानी मुहैया नहीं करा पाती है तो इसे सरकार की नाकामी ही माना जाएगा। भले ही सरकार की ओर से लंबे समय से जल संकट की कार्ययोजनाएं बनाई जारी रही हो लेकिन साफ पीने के पानी का कोई इंतजाम न होने से लोगों के सामने इस बात का संकट है कि साफ पीने का पानी मुहैया हो तो कहां से।
इटावा, 22 मार्च। गुरुवार को विश्व जल दिवस पर पानी बचाने को लेकर चारों ओर चर्चाएं हो रही है। ऐसे में साफ पानी के मुद्दे को पूरे तरह से नजरअंदाज रखा गया है। देश में शुद्ध पानी की विकट समस्या है। लोगों को हलक तर करने के लिए पानी नहीं मिल पा रहा है। लेकिन जिन कंधों पर इस समस्या के समाधान की जिम्मेदारी है, वे घोटाले कर सरकारी धन को डकारने में जुटे हैं। सरकार हमेशा इस बात का दावा करती रही है कि हर आमोखासा को पीने का साफ पानी मुहैया कराया जा रहा है। इसी आबादी में सबसे खास मानी जाएगी चंबल घाटी। जहां के लोग पीने के साफ पानी के लिए लंबे अरसे से तरस रहे हैं। इंडिया मार्का जो हैंडपंप एक दशक पहले स्थापित किए गए थे उनसे भी साफ पीने का पानी नहीं मिल पा रहा है वैसे जब इन हैंडपंपों को स्थापित किया गया तब भी इस बात का परीक्षण नहीं किया गया कि हैंडपंप से साफ पानी आ रहा है या नहीं। लेकिन लोगों की जरूरत और राजनेताओं द्वारा लोगों को खुश करने की व्यवस्था ने हैंडपंपों को खासी तादाद में स्थापित तो करा दिया लेकिन हकीकत में इस बात का ध्यान नहीं रखा गया कि हैंडपंप साफ पानी दे रहा है या नहीं। गांववालों ने इस बात की जब जल निगम अफसरों से शिकायत की तो यह बात खुल करके सामने आई कि हकीकत में गांव के लोगों की ओर से जो शिकायत की गई है वो सही है। लेकिन जल निगम के अफसर इस बात को पूरी तरह से स्वीकार करने की दशा में नहीं है कि हैंडपंपो का पानी अपने स्थापनाकाल के कई साल बाद साफ पानी देना बंद कर दिया है।

इटावा जल निगम के अधिशासी अभियंता एसवी सिंह का कहना है कि इटावा जिले में करीब 1983 से इंडिया मार्का हैंडपंपों के लगने का जो सिलसिला शुरू हुआ वह आज तक जारी है। इटावा में करीब 25000 इंडिया मार्का हैंडपंपों को लगाया जा चुका है। सबसे खास बात तो यह है कि इन हैंडपंपों में से करीब 5000 से ज्यादा हैंडपंपों का वजूद ही मिट चुका है। जिस समय हैंडपंप की स्थापना की जाती है उसी समय सिर्फ उसके पानी का परीक्षण किया जाता है। उसके बाद कभी भी पानी का परीक्षण नहीं किया जाता है। ऐसे में आम आदमी के गले में साफ पानी उतर रहा है या नहीं इससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता है।

वैसे कहने को तो जल निगम की मुख्य शाखा इटावा में पानी के परीक्षण के लिए एक लैब को बना करके रखा गया है जिसका काम किसी भी हैंडपंप की स्थापना के दौरान पानी का परीक्षण करके रिपोर्ट देने का रहता है। आज पीने का साफ पानी एक समस्या बन गया है। हर कोई साफ पीने के पानी का जुगाड़ करने में लगा हुआ है। शहरी इलाकों में मिनरल वाटर का क्रेज देख करके गांव देहात में रहने वाले लोग भी साफ पानी की दरकार रखने लगे हैं। ऐसे में अगर चंबल में साफ पानी की जरूरत की बात की जाए तो कोई बेमानी नहीं होगी। सरकारी हैंडपंप साफ नहीं दे रहे हैं। ऐसे चंबल नदी के आस-पास के गांववालों को चंबल नदी के पानी के सहारे ही रहना पड़ रहा है।

पांच नदियों के लिए खासा लोकप्रिय उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में देश के अन्य हिस्सों की भांति साफ पानी की जरूरत को लेकर लोग मुखर हो रहे हैं। सरकारी हैंडपंपों के जरिए मिलने वाले पानी को साफ नहीं माना जा रहा है। लेकिन इसके बावजूद भी लोगों को सरकारी हैंडपंप का ही पानी पीने के लिए विवश होना पड़ रहा है।

इटावा जिले में चंबल नदी के किनारे बसे सैकड़ों गांव के बाशिंदे साफ पानी पीकर अपनी प्यास बुझा रहे हैं। यह पानी साफ है या नहीं यह सवाल बहस का नहीं है। सवाल यह है कि जब सरकार की जिम्मेदारी है कि वो अपनी प्रजा को साफ पानी मुहैया कराएगी फिर भी साफ पानी मुहैया नहीं हो पा रहा है।

नतीजन इटावा जिले के चंबल नदी के आस-पास के तकरीबन दो सौ गांवों के लोग अपना हलक तर करने के लिए चंबल नदी का वह पानी पीने को मजबूर हो गए हैं। जहां जानवर अपनी प्यास बुझाते हैं और अपने शरीर की गर्मी को शांत करते हैं। इसकी वजह है कि जल निगम के नकारापन के कारण यहां के हैंडपंपों से पानी निकलना बंद हो गया है। चंबल क्षेत्र के बाशिंदे अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में पेयजल की पूर्ति के लिए चंबल नदी के पानी से गुजारा कर रहे हैं। करीब 10 सालों से चंबल घाटी के विकास के लिए करोड़ों रुपए के पैकेज की मांग करके सुर्खियों में आए।

लोक समिति के अध्यक्ष सुल्तान सिंह का कहना है कि वैसे तो चंबल में कई अहम समस्याएं हैं लेकिन इंसानी जीवन के मद्देनजर अगर सरकार अपने वादे के मुताबिक उसे पीने का साफ पानी मुहैया नहीं करा पाती है तो इसे सरकार की नाकामी ही माना जाएगा। भले ही सरकार की ओर से लंबे समय से जल संकट की कार्ययोजनाएं बनाई जारी रही हो लेकिन साफ पीने के पानी का कोई इंतजाम न होने से लोगों के सामने इस बात का संकट है कि साफ पीने का पानी मुहैया हो तो कहां से।

Water and Soil testing workshop , Hamirpur Uttar Pradesh


Sunday, March 18, 2012

MP-Rajasthan to settle Chambal issue

Bhopal/Jaipur: The sharing of Chambal river water is likely to trigger a fresh inter-state dispute between Madhya Pradesh and Rajasthan. A decision was taken unanimously by the Madhya Pradesh assembly to send a delegation after a discussion in the house threw up that Rajasthan was drawing excessive water from the river leading to a serious water problem in the state.
The official delegation, consisting members from the MP ruling party and the Opposition parties, will be sent to settle the dispute amicably.
Meanwhile, senior officer of Rajasthan’s irrigation department said that the flow of water is reduced due to algae formation thereby the required quantity of water is not been supplied to Madhya Pradesh. "We will discuss the issue with the delegation though we have been giving the required amount of water (3,900 qusec) to MP," said the official while speaking to DNA.
Both the states had accused each other in the past over the water dispute. The Madhya Pradesh had accused Rajasthan of denying its share of water.
Raising the issue during discussion over the supplementary demands of the water resources development department in Bhopal on Friday, Congress legislator Govind Singh said the Rajasthan government was taking excessive water from Chambal river leading to serious water shortage in Chambal region.
The Rajasthan government in breach of the agreement reached between both the states had been drawing excessive water from the Chambal river endangering the Ghariyal Sanctuary in Morena district, the legislator told DNA.
Earlier, both the states have agreed to share the water collected in the Kota Barrage from the Gandhi Sagar dam — the first of the four dams built on Chambal river — on an equal share basis. The 64 metre-high masonry gravity dam with a live storage capacity of 6,920 MM was built way back in 1960 in Mansaur district.
 http://daily.bhaskar.com/article/MP-BHO-mp-rajasthan-to-settle-chambal-issue-2989654.html

Tuesday, March 6, 2012

इस बार जनवरी में ही शुरू होगा सर्वे

चंबल में घडिय़ालों सहित अन्य संरक्षित जलीय जीवों की गणना का काम 27 जनवरी से शुरू हो रहा है। सर्वे की तैयारियां पूरी कर ली गई हैं।
भास्कर संवाददाता-!-मुरैना
चंबल में घडिय़ालों की गणना इस बार जनवरी में ही शुरू होने वाली है। आमतौर पर फरवरी के अंत में शुरू होने वाले यह गणना चंबल में होने वाले चंबल एक्सपिडीशन को ध्यान में रखते हुए जल्दी शुरू की जा रही है। वन विभाग ने स्पष्ट किया है कि गणना समय से एक महीने पहले शुरू होने से गणना पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
चंबल में घडिय़ालों की वार्षिक गणना इस बार 27 जनवरी से शुरू हो रही है। गौरतलब है कि आमतौर पर यह गणना फरवरी और मार्च माह में होती है लेकिन इस बार चंबल एक्सपिडीशन फरवरी माह में ही आयोजित होना है। ऐसे में वन विभाग का पूरा ध्यान एक्सपिडीशन में रहेगा। यही कारण है कि इस बार सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए गणना का कार्य एक्सपिडीशन से पहले ही पूरा कर लिया जाएगा। इसके लिए विभाग ने सर्वे का पूरा खाका तैयार कर लिया है। इस बार सर्वे में पारदर्शिता लाने के लिए एक पत्रकार, एक जूलाजी स्टूडेंट और एक वन्यजीव विशेषज्ञ को सर्वे दल में शामिल किया है, ताकि सर्वे के स्व'छ आंकड़े सामने आ सकें।
सर्वे के लिए ठीक होकर आई एक बोट: वन विभाग के पास अब तक सिर्फ एक ही बोट थी। लेकिन सर्वे को ध्यान में रखते हुए वन विभाग ने अपनी एक और बोट ठीक करा ली है। सर्वे के लिए विभाग को करीब तीन बोटों की आवश्यकता है। इसके लिए अंतिम बोट को भी ठीक कराया जा रहा है। विभाग की मानें तो सर्वे शुरू होने तक उनकी सभी बोटें ठीक हो जाएंगी। 

http://www.bhaskar.com/article/MP-OTH-56072-2944434.html

प्रशासन की अनदेखी, सूख गए तालाब व नदियां

भी पानी का जलस्तर कम हो गया है।
भास्कर संवाददाता-!-मुरैना
अंचल में रियासत कालीन करीब एक सैकड़ा से अधिक तालाब थे। इनमें से केवल एक तालाब में ही पानी है। वह भी काफी कम। तालाबों में पानी सूखने की वजह जल संरक्षण की ओर न तो प्रशासन का ध्यान देना है और न ही लोगों का जागरूक होना है। यही हाल नदियों का भी है। क्वारी नदी तो सूख चुकी है अन्य में जलस्तर काफी कम है। यहां तक कि अंचल की सबसे बड़ी नदी चंबल में पानी कम हो गया है।
अंचल में तोमर व सिंधिया राजवंशों ने जलसंरक्षण के लिए करीब एक सैकड़ा से अधिक तालाब बनवाए थे। इनमें से सबलगढ़ का टौंगा तालाब व बस्तपुर के तालाब प्रमुख हैं। टांैगा तालाब में तो कुछ पानी है, लेकिन बस्तपुर तालाब पूरी तरह से सूख चुका है। सालों से इनमें पानी नहीं है। यही हाल अन्य तालाबों का भी है। अधिकतर को लोगों ने खेतों में परिवर्तित कर लिया है।
शहर के तालाबों में बने मकान: शहर में आधा दर्जन से अधिक तालाब व तलैया थे। इनमें से केवल इंद्रा सागर तालाब व हाईवे के किनारे के तालाबों में पानी है। अन्य तालाबों की जमीन को माफिया ने बेच दिया है। इन तालाबों में अब पानी की जगह मकान बने हुए हैं।
क्वारी सूखी, अन्य में पानी कम: अंचल की प्रमुख नदी क्वारी सूख चुकी है। अब यह केवल बरसाती नदी रह गई है। यही हाल आसन, सांक व चंबल नदी का भी है। इनमें भी पानी का स्तर बहुत कम हो गया है।
नहीं हुए प्रयास: तालाबों को बचाने के लिए न तो प्रशासन ने प्रयास किए और न ही लोगों ने। क्वारी नदी पर सूखे के समय में बोरी बंधान कर पानी रोका गया था। लेकिन इसके बाद नदी के पानी को रोकने के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए। साथ ही प्रशासन ने तालाबों पर हुए कब्जों को हटाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। 

http://www.bhaskar.com/article/MP-OTH-57789-2948428.html