Wednesday, May 25, 2011

नदियों के किनारे कंस्ट्रक्शन पर लगेगी रोक (Nav Bharat Times/Noida- 20 May 2011)

विनोद शर्मा ॥ नोएडा

हिंडन और यमुना समेत देश की सभी नदियों के किनारे बांध क्षेत्र की सीमा के अंदर चल रहे निर्माण कार्यों पर गाज गिर सकती है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने गैरसरकारी संगठनों की मांग पर रिवर रेग्युलेशन जोन का ड्राफ्ट बनाने की तैयारी शुरू कर दी है। ड्राफ्ट तैयार करने के लिए 10 सदस्यीय एक कमिटी गठित की गई है। पर्यावरण मंत्रालय के विशेष सचिव जे. एम. मॉस्कर इस कमिटी के चेयरमैन बनाए गए हैं। इस कमिटी में पर्यावरण के विशेषज्ञ, वैज्ञानिक और प्रफेसर और एडवोकेट को भी शामिल किया गया है। इस जोन के बन जाने के बाद नदी के रिवर फ्लड प्लेन एरिया को सेफ रखा जा सकेगा। तब नदियों के किनारे बेशकीमती जमीनों के आस-पास प्लान बनाते समय अप्रूवल लेना होगा, इसमें पब्लिक ऑब्जेक्शन भी होगा।

केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से जुड़े आधिकारिक सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के अनुसार इस कमिटी को लेकर पब्लिक की तरफ से काफी दिनों से डिमांड चल रही थी। हालांकि केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय में सबसे पहले रिवर रेग्युलेशन जोन बनाने की डिमांड 23-24 नवंबर 2001 में दिल्ली में हुई एक वर्कशॉप के दौरान उठी थी। इसके बाद मामला ठंडा पड़ गया। 12 मार्च को जब जापान में भूकंप आया तो यमुना जियो अभियान के कन्वेनर मनोज मिश्रा ने भी प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को लेटर लिखकर भारी जनतबाही से बचाने के लिए रिवर रेग्युलेशन जोन बनाने की डिमांड की थी। यमुना जियो अभियान ने अपने लेटर में कहा था कि पूर्वी दिल्ली और नोएडा, ग्रेटर नोएडा और गाजियाबाद में इन दिनों डूब क्षेत्र में बहुमंजिला बिल्डिंगें बनाई जा रही हैं। इनमें 60 मंजिला बिल्डिंग का भी जिक्र किया गया था। एनजीओ ने कहा था कि जब यह एरिया भूकंप की दृष्टि से बेहद संवेदनशील हैं, तब इतनी ऊंची बिल्डिंगों की इजाजत डूब क्षेत्र में देना लोगों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ होगा। इस लेटर के बाद दिल्ली में यमुना बचाओ आंदोलन की तरफ से जंतर-मंतर पर धरना प्रदर्शन किया गया। 13 अप्रैल को सेव यमुना मूवमेंट की तरफ से भी यमुना को बचाने के लिए जो डिमांड लेटर दिया गया, इसमें रिवर रेग्युलेशन जोन का ड्राफ्ट जल्द से जल्द बनाने की मांग की गई थी। 11 मई को केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश के निर्देश पर रिवर रेग्युलेशन जोन एक्ट का ड्राफ्ट बनाने का नोटिफिकेशन जारी कर दिया।

इस नोटिफिकेशन में चेयरमैन जे . एम . मॉस्कर के अलावा अडिशनल सेक्रेटरी मीरा महर्षि , एडवाइजर डॉ . नलिनी भट्ट , महाराष्ट्र सरकार में सेक्रेटरीपर्यावरण मंत्रालय श्रीमति वाल्सा . आर . नायर सिंह , तमिलनाडु से श्रीलयम अंबू , केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व वैज्ञानिक आर . सी . त्रिवेदी , जेएनयू केरिटायर्ड प्रफेसर ब्रिज गोपाल , आईआईटी रुड़की के इंजीनियर डॉ . जी . जे . चक्रवर्ती , लीगल एडवाइजर मोहम्मद खान और डॉ . ए . सेंटिलवेल को शामिलकिया गया ह ै।

Water crisis in Chambal

  

A Story published in Naidunia, Gwalior dated 24 May 2011

Monday, May 16, 2011

पहली बार जलाभिषेक में हर जिले का पानी का बजट और कार्यों का लक्ष्य होगा


जलाभिषेक अभियान को लक्ष्य एवं परिणाम आधारित बनाने के लिए पहली बार हर जिले का पानी का बजट बनाने के साथ ही भागीरथ किसानों के कार्यों और पुरानी तथा नई जल-संरचनाओं के सुधार और निर्माण कार्य के लक्ष्य तय किए गए हैं। छठे जलाभिषेक अभियान में प्रदेश के पचास जिलों में भागीरथ कृषकों द्वारा सोलह हजार कार्य किए जाएंगे वहीं पच्चीस हजार से अधिक पुरानी तथा नई जल संरचनाओं को बनाया जाएगा।
पंचायत एवं ग्रामीण विकास तथा सामाजिक न्याय मंत्री श्री गोपाल भार्गव ने यह जानकारी देते हुए बताया कि जलाभिषेक अभियान के जमीनी स्तर पर प्रभावी क्रियान्वयन के उद्देश्य से पहली बार हर जिले का पानी का बजट बनाया गया है। बजट का उपयोग बेहतर ढंग से करने के लिए भागीरथ कृषकों द्वारा किए जाने वाले जल-संरचनाओं के कार्य एवं पुरानी जल-संग्रहण संरचनाओं के सुधार तथा नए कार्यों के जिलेवार लक्ष्य तय किए गये हैं। लक्ष्यों के आधार पर ही जलाभिषेक अभियान के क्रियान्वयन की समीक्षा होगी।
भागीरथ कृषकों के कार्यों का लक्ष्य
जिलेवार तय किए लक्ष्य के अनुसार भागीरथ कृषक के कार्य अलीराजपुर में 100, अनूपपुर में 100, अशोक नगर 850, बालाघाट 100, बड़वानी 200, बैतूल 400, भिण्ड 100, भोपाल 100, बुरहानपुर 200, छतरपुर 800, छिन्दवाड़ा 250, दमोह 250, दतिया 150, देवास 1500, धार 500, डिण्डोरी 100, गुना 100, ग्वालियर 150, हरदा 100, होशंगाबाद 100, इन्दौर 400, जबलपुर 100, झाबुआ 100, कटनी 170, खण्डवा 400, खरगोन 400, मण्डला 100, मंदसौर 200, मुरैना 100, नरसिंहपुर 150, नीमच 400, पन्ना 100, रायसेन 150, राजगढ़ 600, रतलाम 400, रीवा 150, सागर 1130, सतना 100, सीहोर 800, सिवनी 150, शहडोल 100, शाजापुर 500, श्योपुर 150, शिवपुरी 300, सीधी 100, सिंगरौली 100, टीकमगढ़ 150, उज्जैन 600, उमरिया 250 और विदिशा में भागीरथ कृषक के लिये 500 कार्य का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
पुरानी जल-संग्रहण संरचनाओं का सुधार एवं नई का निर्माण
पुरानी एवं नई जल-संग्रहण संरचनाओं के सुधार एवं निर्माण के लिये भी जिलेवार तय किए लक्ष्य इस प्रकार हैं; अलीराजपुर 300, अनूपपुर 1100, अशोक नगर 250, बालाघाट 1100, बड़वानी 350, बैतूल 600, भिण्ड 220, भोपाल 210, बुरहानपुर 150, छतरपुर 350, छिन्दवाड़ा 830, दमोह 350, दतिया 250, देवास 210, धार 1200, डिण्डोरी 230, गुना 375, ग्वालियर 370, हरदा 350, होशंगाबाद 100, इन्दौर 300, जबलपुर 350, झाबुआ 480, कटनी 1800, खण्डवा 350, खरगोन 620, मण्डला 1400, मंदसौर 850, मुरैना 475, नरसिंहपुर 250, नीमच 290, पन्ना 300, रायसेन 300, राजगढ़ 190, रतलाम 150, रीवा 970, सागर 1050, सतना 410, सीहोर 2380, सिवनी 390, शहडोल 410, शाजापुर 700, श्योपुर 250, शिवपुरी 300, सीधी 360, सिंगरौली 200, टीकमगढ़ 230, उज्जैन 360, उमरिया 210 और विदिशा जिले में 380।
मनोज पाठक
http://www.mpinfo.org/mpinfonew/newsdetails.aspx?newsid=110516N1

NGO seeks Prime Minister's help to rid Yamuna bed of encroachers (The Hindu/New Delhi- 13 May 2011)

Staff Reporter

Unwilling to let the Delhi Transport Corporation stake claim to a portion of the river bed and use it for a bus depot, the Yamuna Jiye Abhiyan, a non-government organisation, has written to the Prime Minister, reiterating the need to rid the floodplain of encroachments.

In the letter, the YJA has supported its claims by drawing attention to the information procured through the Right to Information Act. The NGO pointed out that RTI responses received from DDA show the land was meant for recreational purposes. It also says that DDA has not received any request from the DTC or the Transport Department for identification and allotment of land for shifting of the bus depot currently functioning opposite Indraprastha Park on Ring Road.

The NGO claims there is enough evidence to prove that the portion of land under DTC's occupation is part of the river bed. It has urged the Prime Minister to direct the Delhi Government to remove the temporary bus depot from the river bed.

L-G's order

“Such an act would be in accordance with the directions of the Lieutenant-Governor of Delhi who had allowed the temporary occupation only for the duration of the Commonwealth Games-2010 and that too in the light of the security needs of the Games. This act would also be in tune with the directions dated December 3, 2010, of the statutorily created Delhi Urban Arts Commission which had advised the DTC to dismantle its structures and to vacate the river bed. This act would also be in tune with the directions of the Delhi High Court of December 2005 mandating removal of all structures from within 300 m of the river on either side. In pursuance of which order, thousands of jhuggi-jhonpri structures from the river bed have already been removed…” the letter says.

YJA convenor Manoj Misra said there is land available elsewhere in the city for the bus depot but the Government seems reluctant to clear the river bed. “There is enough space at the nearby Mayur Vihar Phase I City Centre where under the Master Plan of Delhi there is already a sprawling space provided for a bus depot, and which was even suggested way back in 2008 to the DTC by DDA.”

He went on to add: “The DDA itself has informed that the land use of the said area, where the depot stands is green (recreation). Also, the site is dangerous as a high-tension line goes right over it and a mishap can result in an avoidable catastrophe. The bus depot is symptomatic of the wrong and poor planning on the part of the DTC and the Public Works Department (that has raised the depot on behalf of DTC). The entry and exit for the buses from the said depot is fraught with danger as any bus entering from the Ashram side into the depot has to cut through the flowing traffic on National Highway 24 while any bus exiting from the depot again has to cut through the normal flow of the traffic on Ring Road to either proceed towards Ashram or take a U-turn under the flyover for going to Rajghat. This fact also points to the wrong and poor planning in identifying this site for the depot,” he said.


“The land was meant for recreational purposes….enough space at Mayur Vihar for the depot”

Expert panel in offing to monitor riverfront realty growth (Times of India/New Delhi- 13 May 2011)

NEW DELHI: Regulations to govern riverfront development could be in the offing as the environment ministry is setting up an expert group to seek its opinion about it.

There has been rampant development on riverfronts in cities; displacing poor and building expensive real estate. The ministry's moves may come in as a key route to regulate how the rivers are managed in the cities. Now, the rules stipulate only regulation of coastal zone lands under the Environment Protection Act. The same Act can help in formulating other regulations.

In Delhi, the development on the Yamuna's bank – Akshardham Temple and the Commonwealth Games Village —led to litigation and criticism for eating into the poisoned river's natural flow. Besides, the poor had to make way for lucrative real estate.

Monday, May 2, 2011

फिर भी घट गया जंगल

भोपाल. जंगल बढ़ाने की योजनाओं पर 10 साल में 200 करोड़ रुपए खर्च करने के बावजूद प्रदेश में 1230 वर्ग किलोमीटर सघन वन घट गया। यह खुलासा फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (एफएसआई) की ताजा रिपोर्ट में हुआ है।

रिपोर्ट में 1997 से 2007 के बीच का विश्लेषण किया गया है। प्रदेश में 1997 में 42 हजार 884 वर्ग किमी क्षेत्र में सघन वन थे। दस साल बाद 2007 में यह क्षेत्रफल घटकर 41654 वर्ग किमी रह गया।

गौरतलब है कि वन विभाग जंगल बढ़ाने के लिए हर साल एक करोड़ पौधे रोपने पर 20 करोड़ रुपए खर्च करता है। विभाग ने 2006 से 2009 के बीच 5 करोड़ 28 लाख 57 हजार पौधे रोपे।

विभाग का दावा है कि इनमें से 3 करोड़ 81 लाख 95 हजार पौधे जीवित बचे हैं। बीते साल पौधारोपण के बजट में 36 करोड़ रुपए थे जिनमें से 18 करोड़ रोपणी से और शेष 18 करोड़ केंद्रीय परियोजना से मिले थे।

इसके अलावा जंगल बढ़ाने के लिए वन विभाग लाखों की संख्या में पौधे गैर सरकारी संगठनों को भी बांटता है।

वनीकरण से करेंगे भरपाई

हां, सघन वन का क्षेत्र कम हुआ है। यह कटाई या बांध आदि बनने के समय जंगलों को क्षति का नतीजा है। इसकी भरपाई के लिए क्षतिपूर्ति वनीकरण की योजना शुरू की है। अगले 8-10 सालों में हम सघन वन का खोया हुआ क्षेत्र वापस प्राप्त कर लेंगे।
रमेश के दवे, प्रधान मुख्य वन संरक्षक, मप्र

http://www.bhaskar.com/article/MP-OTH-lighter-woods-yet-2061903.html

मोरों की मौत पर चक्काजाम

ग्वालियर. शहर से 19 किमी दूर निरावली गांव में रविवार को 19 और मोरों की मौत पर ग्रामीणों में उबाल आ गया। उन्होंने मोरों के शव के साथ एबी रोड पर ट्रैफिक जाम कर दिया। साढ़े तीन घंटे तक चले ट्रैफिक जाम से इस महत्वपूर्ण हाईवे पर चार किमी तक एक हजार से अधिक वाहनों की कतारें लग गईं।

ग्रामीणों की मांग थी कि मोरों की मौत के लिए जिम्मेदार रायरू डिस्टलरी को यहां से हटाया जाए, इसका गंदा पानी राष्ट्रीय पक्षी के लिए काल बन गया है। उल्लेखनीय है कि इससे पहले 23 अप्रैल को 26 मोरों की मौत हो चुकी है।
19 और मोरों की मौत हो गई निरावली गांव में

3.30 घंटे ट्रैफिक जाम रखा गुस्साए ग्रामीणों ने

04 किमी लंबे जाम में फंसे 1000 से अधिक वाहन

प्यास से रहे बेहाल

निरावली गांव में मोरों की मौत से नाराज ग्रामीणों ने एबी रोड पर साढ़े तीन घंटे तक ट्रैफिक जाम कर प्रशासन पर तो कुछ हद तक दबाव डालने में सफलता पा ली, लेकिन पांच हजार यात्रियों को धधकती गर्मी नंे बेहाल कर दिया। चार किमी तक वाहनों की कतारें लगने से इसमें सवार लोगों के लिए यह जाम किसी सजा से कम नहीं था। बच्चे व महिलाएं चिलचिलाती धूप में परेशान होती रही।

निरावली के ग्रामीणों द्वारा चक्काजाम करने से सड़क की दोनों तरफ वाहनों में सवार पांच हजार लोग प्यास से बेहाल रहे। पानी के लिए लोग खेतों पर नलकूप ढूंढने निकल पड़े। सबसे बुरा हाल बच्चों व महिलाओं का रहा, जिनके वाहन के पास ढाबे थे, वहां तो लोगों ने पानी की बोतल व पाउच खरीद कर प्यास बुझाई लेकिन जहां दूर-दूर तक पानी नहीं था,वे बोतल लिए भटक रहे थे। भीषण गर्मी के कारण लोगों को बार-बार प्यास लग रही थी।

लोग वाहनों से बाहर आकर सड़क किनारे पेड़ों के नीचे बैठ गए। एक स्थान पर नलकूप चलता देख लोग उधर दौड़े और बोतलों में पानी भरने वालों की भीड़ लग गई। वहीं ट्रैफिक जाम खुलवाने में पुलिस असहाय दिखी। क्योंकि ग्रामीण उनकी कोई बात सुनने को राजी नहीं थे।

विसरा जांच आने में लगेगा एक माह का समय: 23 अप्रैल को 26 मोरों की मौत हो गई थी। इन मोरों का पोस्टमार्टम करने के बाद इनका विसरा जांच के लिए सागर एवं जबलपुर की लैब में भेजा गया था लेकिन अभी तक रिपोर्ट नहीं आ सकी है।

वन विभाग का कहना है कि विसरा रिपोर्ट आने में कम से कम एक माह का समय लगेगा। उधर पशु चिकित्सा विभाग के डॉक्टरों का कहना है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट से मौत का कारण स्पष्ट नहीं हो सका है, इसलिए वन विभाग को विसरा जांच के लिए कहा गया था।

पुलिस रही असहाय

पुलिस कर्मी ट्रैफिक जाम शुरू होने के कुछ ही देर बाद निरावली पहुंच गए थे लेकिन वे ग्रामीणों को समझाने में विफल रहे। जाम में फंसने वाले वाहन चालक पुलिस कर्मियों से जाम खुलवाने के लिए बार-बार आग्रह कर रहे थे लेकिन पुलिस लाचार थी।


कलेक्टर ने मांगा प्रस्ताव

रायरू डिस्टलरी के पानी से पैदा हो रही समस्याओं को दूर करने के लिए कलेक्टर आकाश त्रिपाठी ने कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। उन्होंने वन अधिकारियों से कहा कि यदि डिस्टलरी क्षेत्र वन्य प्राणी क्षेत्र में है तो फैक्टरी प्रबंधन के खिलाफ वन्य प्राणी अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाए। यदि ऐसा नहीं है तो लोक सुविधाओं के हनन पर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 133 के तहत प्रस्ताव उन्हें भेजा जाए। वन विभाग ने दोनों ही मामलों में अभी कार्रवाई नहीं की है।

आज होगी संयुक्त बैठक
चक्काजाम करने वाले ग्रामीणों के बीच पहुंचीं सिटी मजिस्ट्रेट उमा करारे ने बताया कि सोमवार को सुबह 11 बजे संयुक्त बैठक होगी। अपर कलेक्टर आरके जैन की अध्यक्षता में होने वाली इस बैठक में पांच ग्रामीण, रायरू डिस्टलरी प्रबंधन का प्रतिनिधि, आबकारी तथा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी शामिल रहेंगे।

पहले भी हो चुकी है जांच

डिस्टलरी से निकलने वाले पानी के कारण खेत की मिट्टी खराब होने की शिकायत डेढ़ साल पहले भी किसानों ने की थी। तब भी कलेक्टर ने धारा 133 के तहत प्रकरण दर्ज कर जांच कराई गई थी। इसके बाद कमेटी को पानी की जांच की जिम्मेदारी सौंपी गई थी पर जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में पानी को प्रदूषित नहीं माना था।

जमीन के अंदर जा रहा है गंदा पानी

लगभग तीन हजार की आबादी वाले निरावली गांव के ग्रामीणों का कहना है कि डिस्टलरी से निकलने वाला दूषित पानी खेतों में जा रहा है। दूषित पानी नलकूप एवं कुओं में स्रोत के माध्यम से पहुंच रहा है, इससे लोगों को पेट की बीमारियां हो रही है। गांव में लगे नलकूप एवं कुओं से निकलने वाले पानी की जांच कराई जाए। ग्रामीणों का कहना है कि 10 दिन में लगभग एक सैकड़ा मोरों की मौत हो चुकी है।

ट्रैफिक जाम से हालत खस्ता

ग्वालियर से सुबह 11:30 बजे बानमोर में एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए परिवार के साथ निकला था लेकिन घंटों जाम में फंसने के कारण परिवार के सदस्यों की हालत खराब हो गई है। इसलिए घर लौटने पर विचार कर रहा हूं।

रामवीर सिंह

मैं बेटी को ग्वालियर पेपर दिलवाने के लिए कार से आया था, मुझे नहीं मालूम था कि कार से वापस जयपुर जाने पर मुझे इस तरह के जाम में फंसना पड़ेगा। इस गर्मी में कहीं भी पानी पीने को नहीं मिला।

मदन मोहन शर्मा

http://www.bhaskar.com/article/MP-GWA-people-jammed-road-in-gwalior-in-protest-against-death-of-peacocks-2069833.html