Saturday, December 31, 2011

Turtles’ poaching rampant in Chambal



KANPUR: Once the monsoon season comes to an end, the turtles start moving to ponds and other smaller water bodies from paddy fields. The people from Kanjar tribe trap these turtles in fishing net and bury them underneath the ground, he added.

They dump the aquatic animals in their colonies located in Bhogaon and Kurawli in Mainpuri district, Kokhpura, Jaswantnagar and Bharthana in Etawah district. From here they are sent to Kolkata via roads and trains, where turtles are in demand.

The group becomes active in the region during winters.

Chauhan, who is working on turtle conservation, said he had come across Kanjar groups in the region. "They kill turtles by harpoons," he added

Senior forest officer BK Singh said: "Intensive patrolling would be carried out to check the activities of Kanjar tribe."

The 425-km stretch in Chambal has now been given a permanent status of turtle and ghariyal sanctuary as per the provisions of the Wildfife Protection Act-1972.

Capturing, killing or selling Indian flap shelled pond turtle is punishable under the Act.

The shell of this species is believed to be of medicinal value in both China and India. It is burnt and grinded with oil to produce a medicine in China that is used to treat certain types of skin diseases. In India, the shell is used to make a medicine said to cure tuberculosis.

The shell of this species is believed to be of medicinal value in both China and India. It is burnt and grinded with oil to produce a medicine in China that is used to treat certain types of skin diseases. In India, the shell is used to make a medicine said to cure tuberculosis.

http://timesofindia.indiatimes.com/city/kanpur/Turtles-poaching-rampant-in-Chambal/articleshow/11275311.cms?intenttarget=no#.Tv59l0VJ7go.facebook

Tuesday, December 27, 2011

गुम न हो जाए कान्हा की कालिंदी

आनंद शुक्ल, इलाहाबाद मथुरा, वृन्दावन की कलकल करती कालिंदी कहीं गुम न हो जायं। सूबे के कुछ जिलों में यमुना में प्रदूषण इस कदर बढ़ चला है कि कान्हा की कालिंदी काल के कगार पर पहुंच गई हैं। ऐसा हम नहीं वैज्ञानिकों व सामाजिक संस्थाओं का कहना है। अभी हाल में प्रदूषण की जांच करने वाली ग्लोबल ग्रीन की सर्वे रिपोर्ट पर गौर करें तो मथुरा, वृन्दावन और आगरा में यमुना का अस्तित्व ही खतरे में दिखाई दे रहा है। इन तीन जिलों में यमुना शतप्रतिशत प्रदूषित हो चली हैं। इन जिलों की यमुना का जल 80 फीसदी प्रदूषित हो गया है और बीओडी की मात्रा 9 तक पहुंच गई है। ग्लोबल ग्रीन संस्था की अक्टूबर में संगम से उद्गम की यात्रा कई मायनों में महत्वपूर्ण रही। संगम की यमुना का रंग तो बदला ही है, साथ ही पश्चिमी जिलों की यमुना का जल भी बदरंग हो गया। बीओडी (बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड)की मात्रा 9 तक हो गया है। यात्रा में शामिल बायोबेद शोध संस्थान के वीके द्विवेदी एवं उनके दल ने जल की सैम्पलिंग कर निष्कर्ष निकाला कि गंगा में प्रदूषण की मात्रा ऋषिकेश से प्रारंभ होकर कानपुर पहंुचते-पहंुचते अत्यधिक प्रदूषित हो जाती है। इसी प्रकार वृन्दावन तक पहंुचते-पहंुचते यमुना 80 फीसदी तक प्रदूषित हो जाती हैं। ग्लोबल ग्रीन्स और सामाजिक संस्था स्नेह ने संगम से गंगोत्री की यात्रा के दौरान गंगा, यमुना, रामगंगा, चंबल तथा गोमती नदी में प्रदूषण की मात्रा व जल की उपलब्धता के आंकड़े एकत्र किए। आंकड़े बताते हैं कि गंगा कानपुर आते-आते काफी प्रदूषित हो जाती हैं। टिहरी में बांध बनाकर भागीरथी को बांध दिए जाने के कारण जल की मात्रा घटती जा रही है। रही सही कसर हरिद्वार में सिंचाई हेतु गंगा से अनगिनत नहरों को पानी दिए जाने के कारण पूरी हो गई। यमुनोत्री से देहरादून तक तो अथाह है पर दिल्ली व हरियाणा के बीच बने बांधों व कैनालों के कारण मथुरा आते-आते जल प्रवाह समाप्त हो जाता है। इलाहाबाद में जो यमुना का जल पहंुच रहा है वह इटावा में पंचकोसी नदी जिसमें चंबल, केन तथा हमीरपुर में मिल रही बेतवा व स्वयं यमुना नदी का पानी शामिल है। इससे यहां अभी कुछ राहत है।
http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=15&edition=2011-12-26&pageno=3

Forest dept to release 90 ghariyals in Chambal

Morena: The state forest department is all set to release a new set of Ghariyals in the Chambal River as part of their ongoing ‘rear and release’ programme.
A total of 90 ghariyals (Gavialis gangeticus), born in 2008 at National Chambal Ghariyal Sanctuary Morena, will be released. According to the last census, there are 928 ghariyals in Chambal passing through three states.
These aquatic species have been declared as a critically endangered by the International Union For Conservation of Nature (IUCN). The issue came to the prominence when more than 65 gharials were found dead within a 35km stretch of the Chambal in December 2007.
According to aquatic life expert Dr Rishikesh Sharma, who was actively involved with the management of the sanctuary from its inception, gharials would not have survived if measures of protection were not tightened.
“The population is on rise now. We have got permission from our headquarters to release the new set of ghariyals this week.” he told DNA.
Dr Sharma pointed out that female ‘gharials’ lay around 30-50 eggs during breeding season and around 2,000-2,500 eggs are found in sand ‘nests’ near the banks of Chambal river every year.
Out of these, the 200-250 eggs are brought to the sanctuary and develop them. The National Chambal Gharial Sanctuary was set up near Morena’s Devari village in 1978, 300 young gharial were released into the Chambal till 2006.
In 2007, the officials had released 25 young ‘gharials being reared at Dang Basai Ghat in the Chambal River which was found to be most suitable for natural habitat of these ‘gharials’. Officials claim sand-mining, poses one of the most significant threats to gharials.
“Sand mining and illegal poaching in a sanctuary near Chambal river in Morena has been posing threat to conservation efforts of the endangered aquatic species” said an official. A proposal to exclude villages in the Chambal sanctuary area was also sent and to confine the sanctuary area to the river.
http://daily.bhaskar.com/article/MP-BHO-forest-dept-to-release-90-ghariyals-in-chambal-2677524.html

Thursday, December 22, 2011

टेम्स ट्रस्ट जनवरी से शुरू करेगा काम

आगरा, जागरण संवाददाता: यमुना नदी को प्रदूषण मुक्त करने के काम की शुरुआत शंकर घाट से होगी। इसकी परिधि इटावा सीमा से लगे डिबोली घाट यानि 57 किमी रहेगी। यह निर्णय टेम्स रिवर रेस्टोरेशन ट्रस्ट (टीआरआरटी) और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की आठ सदस्यीय संयुक्त टीम ने इंटेक और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के स्थानीय प्रतिनिधि आरपी सिंह के साथ लम्बे विचार विमर्श के बाद लिया। चयनित लगभग 57 किमी लम्बे नदी के भाग का अपस्ट्रीम छोर जहां लगभग 22 किमी दूर है, वहीं डाउन स्ट्रीम में 35 किमी दूर। दो दिवसीय प्रवास के बाद इटावा रवाना होने से पूर्व टीम के सदस्यों ने जनवरी से टीआरआरटी का कार्यालय बटेश्र्वर में खोलने का निश्चय किया है। इसके लिए जगह भी प्रस्तावित है। टीआरआरटी के रोबर्ट ओट और डॉ. पीटर का मानना है कि बटेश्र्वर का आरंभिक कार्यस्थल के रूप में चयन इसलिए खास तौर से उपयुक्त है, क्यों कि इटावा, आगरा और फीरोजाबाद के लोगों का आना-जाना यहां बना रहता है। यही नहीं यमुना नदी में पानी की स्थिति भी यहां सुधरी हुई है। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के प्रतिनिधि डॉ. असगर नवाब के अनुसार नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए इन्हीं स्थलों पर मुख्य रूप से काम होना है।
http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=35&edition=2011-12-22&pageno=7#id=111729010771178792_35_2011-12-22

थीमस की तरह यमुना को शुद्ध करेंगे रॉबर्ट

बकेवर, अप्र : आस्था और विश्वास से जुड़ी यमुना नदी को प्रदूषण से बचाने में अब विदेशी हाथ लगेंगे। इंग्लैंड के थेम्स रिवर रेस्टोरेशन ट्रस्ट ने यह बीड़ा उठाया है। ट्रस्ट के परियोजना अधिकारी रॉबर्ट ओट पीटर स्विलिट ने डिभौली घाट पर नारियल फोड़कर योजना का शुभारंभ किया। उन्होंने कहा कि उनका मकसद यमुना नदी को लंदन की थीमस नदी की भांति पवित्र और स्वच्छ बनाना है। इंग्लैंड के उक्त ट्रस्ट और डब्लूडब्लूएफ इंडिया और पीस इंस्टीट्यूट के संयुक्त तत्वावधान में लुप्तप्राय जलचरों को बचाने की कवायद शुरू की गयी है। पहले चरण में भरेह से लेकर बटेश्वर तक सर्वे कराया जायेगा और यमुना के जल में जीवन यापन कर रहे जलचरों की गतिविधियों के ज्ञान के साथ ही उनकी घटती संख्या पर विचार किया जायेगा। परियोजना अधिकारी रॉबर्ट ओट ने बताया कि यमुना नदी के डिभौली घाट पर कछुआ प्रजनन केंद्र की स्थापना राज्य सरकार के सहयोग से करायी जायेगी। इस मौके पर मछली शिकारियों को शिकार के दौरान सावधानी बरतने की सलाह देते हुए अन्य जलचरों को बचाने में सहयोग की अपील की। उन्होंने बताया कि यह कार्यक्रम दो साल चलेगा। इस अवसर पर पीस इंस्टीट्यूट के परियोजना अधिकारी सीताराम, विश्व प्रकृति विधि के संजीव कुमार यादव, वरिष्ठ समन्वयक असगर नबाव, शोधार्थी रवि भदौरिया ने यमुना नदी में एक मोटर वोट को भी छोड़ा। जिसका नाम थीमस नदी के नाम पर थमसिंग वोट रखा गया। सुखराम निषाद, रिंबू खान, रवींद्र त्रिपाठी, शिवकुमार मुन्ना, राजेंद्र बाबा, ध्रुव नारायन त्रिपाठी ने विचार व्यक्त किये।

http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=22&edition=2011-12-22&pageno=6#id=23730102906640_22_2011-12-22

Monday, December 19, 2011

टेम्स की तर्ज पर होगा यमुना शुद्धीकरण

आगरा, जागरण संवाददाता: यमुना को मूल स्वरूप में भले न लाया जा सके, लेकिन उसकी बदहाली काफी हद तक कम की जा सकती है। यह कहना है पीस इंस्टीट्यूट चैरिटेबल ट्रस्ट (पीआईसीटी) के निदेशक और प्रख्यात पर्यावरणविद् मनोज मिश्र का। वे लंदन के टेम्स रिवर रेस्टोरेशन ट्रस्ट (टीआरआरटी) के सहयोग से कालिंदी को साफ करने के लिए अभियान के तहत दो दिवसीय यात्रा पर आगरा आये हुए थे। हाथी घाट पर यमुना बचाओ आंदोलन के धरनास्थल पर जागरण से वार्ता करते हुए उन्होंने बताया कि फिलहाल बटेश्र्वर के सियांच, फरह के गढ़ाया और शेरगढ़ के अडेया गांवों के नदी तटीय क्षेत्र में नदी शुद्धिकरण का कार्य किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि टीआरआरटी का इस काम में सहयोग अवश्य ले रहे हैं, लेकिन टेम्स और यमुना की तुलना प्रासंगिक नहीं है। फिलहाल उनका उद्देश्य नदी में गंदा पानी जाने से रोकना है। उधर, इंग्लैंड की एक टीम यमुना शुद्धिकरण अभियान के लिये मंगलवार को बटेश्वर पहुंच रही है। यह नदी संरक्षण के अलावा जल जीवों की स्थिति का आकलन भी करेगी। डब्लूडब्लूएफ इंडिया के स्थानीय कन्वीनर आरपी सिंह के अनुसार संस्था के प्रतिनिधियों द्वारा टेम्स के अनुभवों के आधार पर यहां के लिये भी कार्ययोजना बनायी जायेगी। नदी तालमेल परियोजना यमुना के दोनों ओर के भागों को प्रदूषण मुक्त व व्यवस्थित करने के उद्देश्य से जो काम किए जाने हैं, उनमें स्थानीय कार्यशील लोगों को अभियान से जोड़ना, तटीय क्षेत्रों में रहने वाले समूहों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना मुख्य है।