आनंद शुक्ल, इलाहाबाद मथुरा, वृन्दावन की कलकल करती कालिंदी कहीं गुम न हो जायं। सूबे के कुछ जिलों में यमुना में प्रदूषण इस कदर बढ़ चला है कि कान्हा की कालिंदी काल के कगार पर पहुंच गई हैं। ऐसा हम नहीं वैज्ञानिकों व सामाजिक संस्थाओं का कहना है। अभी हाल में प्रदूषण की जांच करने वाली ग्लोबल ग्रीन की सर्वे रिपोर्ट पर गौर करें तो मथुरा, वृन्दावन और आगरा में यमुना का अस्तित्व ही खतरे में दिखाई दे रहा है। इन तीन जिलों में यमुना शतप्रतिशत प्रदूषित हो चली हैं। इन जिलों की यमुना का जल 80 फीसदी प्रदूषित हो गया है और बीओडी की मात्रा 9 तक पहुंच गई है। ग्लोबल ग्रीन संस्था की अक्टूबर में संगम से उद्गम की यात्रा कई मायनों में महत्वपूर्ण रही। संगम की यमुना का रंग तो बदला ही है, साथ ही पश्चिमी जिलों की यमुना का जल भी बदरंग हो गया। बीओडी (बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड)की मात्रा 9 तक हो गया है। यात्रा में शामिल बायोबेद शोध संस्थान के वीके द्विवेदी एवं उनके दल ने जल की सैम्पलिंग कर निष्कर्ष निकाला कि गंगा में प्रदूषण की मात्रा ऋषिकेश से प्रारंभ होकर कानपुर पहंुचते-पहंुचते अत्यधिक प्रदूषित हो जाती है। इसी प्रकार वृन्दावन तक पहंुचते-पहंुचते यमुना 80 फीसदी तक प्रदूषित हो जाती हैं। ग्लोबल ग्रीन्स और सामाजिक संस्था स्नेह ने संगम से गंगोत्री की यात्रा के दौरान गंगा, यमुना, रामगंगा, चंबल तथा गोमती नदी में प्रदूषण की मात्रा व जल की उपलब्धता के आंकड़े एकत्र किए। आंकड़े बताते हैं कि गंगा कानपुर आते-आते काफी प्रदूषित हो जाती हैं। टिहरी में बांध बनाकर भागीरथी को बांध दिए जाने के कारण जल की मात्रा घटती जा रही है। रही सही कसर हरिद्वार में सिंचाई हेतु गंगा से अनगिनत नहरों को पानी दिए जाने के कारण पूरी हो गई। यमुनोत्री से देहरादून तक तो अथाह है पर दिल्ली व हरियाणा के बीच बने बांधों व कैनालों के कारण मथुरा आते-आते जल प्रवाह समाप्त हो जाता है। इलाहाबाद में जो यमुना का जल पहंुच रहा है वह इटावा में पंचकोसी नदी जिसमें चंबल, केन तथा हमीरपुर में मिल रही बेतवा व स्वयं यमुना नदी का पानी शामिल है। इससे यहां अभी कुछ राहत है।
http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=15&edition=2011-12-26&pageno=3
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