संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अधिकारियों ने कार्बन पदार्थों से ओजोन परत को खतरे को उजागर करने के लिए 26 मार्च को माउंट एवरेस्ट पर बैठक आयोजित की। ये कार्बन यौगिक एचसीएफसीएस कहलाते हैं और इनका एयरकंडीश्नर और निर्माण सामग्री में इस्तेमाल किया जाता है। इनसे मिलते-जुलते रासायनिक पदार्थ सीएफसीएस फ्रिज और एयरोसोल्स में इस्तेमाल होते थे लेकिन अब धीरे-धीरे उनका इस्तेमाल बंद होता जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र चाहता है कि विकसित देशों में 2020 तक और विकासशील देशों में 2030 तक इन रासायनिक पदार्थों के इस्तेमाल पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी जाए। उल्लेखनीय है कि कुछ समय पहले नेपाल के मंत्रिमंडल की बैठक जलवायु परिवर्तन के खतरे को उजागर करने के लिए एवरेस्ट के आधार शिविर में आयोजित की गई थी। अनेक वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लेशियर ऐसी गति से पिघल रहे हैं कि एक अरब लोगों से अधिक का पानी का स्रोत खतरे में पड़ सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि हिमालय के पिघलते ग्लेशियरों से उनसे निकलने वाली नदियों का भविष्य खतरे में पड़ जायेगा। हिमालय के हजारों ग्लेशियर एशिया की 10 प्रमुख नदियों का स्रोत हैं जिन पर करोड़ों का जीवन निर्भर है। पृथ्वी के बढ़ते तापमान के कारण अगले 50 वर्षों में ये नदियां सूख सकती हैं। पिछले सौ वर्षों में दुनिया का औसत तापमान 0.74 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है लेकिन काठमांडू स्थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर माउंटेन डेवलपमेंट का कहना है कि इसका असर हिमालय पर सबसे अधिक हुआ है।
http://www.mpinfo.org/mpinfonew/rojgar/2011/2803/sam03.asp
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