Saturday, December 31, 2011

Turtles’ poaching rampant in Chambal



KANPUR: Once the monsoon season comes to an end, the turtles start moving to ponds and other smaller water bodies from paddy fields. The people from Kanjar tribe trap these turtles in fishing net and bury them underneath the ground, he added.

They dump the aquatic animals in their colonies located in Bhogaon and Kurawli in Mainpuri district, Kokhpura, Jaswantnagar and Bharthana in Etawah district. From here they are sent to Kolkata via roads and trains, where turtles are in demand.

The group becomes active in the region during winters.

Chauhan, who is working on turtle conservation, said he had come across Kanjar groups in the region. "They kill turtles by harpoons," he added

Senior forest officer BK Singh said: "Intensive patrolling would be carried out to check the activities of Kanjar tribe."

The 425-km stretch in Chambal has now been given a permanent status of turtle and ghariyal sanctuary as per the provisions of the Wildfife Protection Act-1972.

Capturing, killing or selling Indian flap shelled pond turtle is punishable under the Act.

The shell of this species is believed to be of medicinal value in both China and India. It is burnt and grinded with oil to produce a medicine in China that is used to treat certain types of skin diseases. In India, the shell is used to make a medicine said to cure tuberculosis.

The shell of this species is believed to be of medicinal value in both China and India. It is burnt and grinded with oil to produce a medicine in China that is used to treat certain types of skin diseases. In India, the shell is used to make a medicine said to cure tuberculosis.

http://timesofindia.indiatimes.com/city/kanpur/Turtles-poaching-rampant-in-Chambal/articleshow/11275311.cms?intenttarget=no#.Tv59l0VJ7go.facebook

Tuesday, December 27, 2011

गुम न हो जाए कान्हा की कालिंदी

आनंद शुक्ल, इलाहाबाद मथुरा, वृन्दावन की कलकल करती कालिंदी कहीं गुम न हो जायं। सूबे के कुछ जिलों में यमुना में प्रदूषण इस कदर बढ़ चला है कि कान्हा की कालिंदी काल के कगार पर पहुंच गई हैं। ऐसा हम नहीं वैज्ञानिकों व सामाजिक संस्थाओं का कहना है। अभी हाल में प्रदूषण की जांच करने वाली ग्लोबल ग्रीन की सर्वे रिपोर्ट पर गौर करें तो मथुरा, वृन्दावन और आगरा में यमुना का अस्तित्व ही खतरे में दिखाई दे रहा है। इन तीन जिलों में यमुना शतप्रतिशत प्रदूषित हो चली हैं। इन जिलों की यमुना का जल 80 फीसदी प्रदूषित हो गया है और बीओडी की मात्रा 9 तक पहुंच गई है। ग्लोबल ग्रीन संस्था की अक्टूबर में संगम से उद्गम की यात्रा कई मायनों में महत्वपूर्ण रही। संगम की यमुना का रंग तो बदला ही है, साथ ही पश्चिमी जिलों की यमुना का जल भी बदरंग हो गया। बीओडी (बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड)की मात्रा 9 तक हो गया है। यात्रा में शामिल बायोबेद शोध संस्थान के वीके द्विवेदी एवं उनके दल ने जल की सैम्पलिंग कर निष्कर्ष निकाला कि गंगा में प्रदूषण की मात्रा ऋषिकेश से प्रारंभ होकर कानपुर पहंुचते-पहंुचते अत्यधिक प्रदूषित हो जाती है। इसी प्रकार वृन्दावन तक पहंुचते-पहंुचते यमुना 80 फीसदी तक प्रदूषित हो जाती हैं। ग्लोबल ग्रीन्स और सामाजिक संस्था स्नेह ने संगम से गंगोत्री की यात्रा के दौरान गंगा, यमुना, रामगंगा, चंबल तथा गोमती नदी में प्रदूषण की मात्रा व जल की उपलब्धता के आंकड़े एकत्र किए। आंकड़े बताते हैं कि गंगा कानपुर आते-आते काफी प्रदूषित हो जाती हैं। टिहरी में बांध बनाकर भागीरथी को बांध दिए जाने के कारण जल की मात्रा घटती जा रही है। रही सही कसर हरिद्वार में सिंचाई हेतु गंगा से अनगिनत नहरों को पानी दिए जाने के कारण पूरी हो गई। यमुनोत्री से देहरादून तक तो अथाह है पर दिल्ली व हरियाणा के बीच बने बांधों व कैनालों के कारण मथुरा आते-आते जल प्रवाह समाप्त हो जाता है। इलाहाबाद में जो यमुना का जल पहंुच रहा है वह इटावा में पंचकोसी नदी जिसमें चंबल, केन तथा हमीरपुर में मिल रही बेतवा व स्वयं यमुना नदी का पानी शामिल है। इससे यहां अभी कुछ राहत है।
http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=15&edition=2011-12-26&pageno=3

Forest dept to release 90 ghariyals in Chambal

Morena: The state forest department is all set to release a new set of Ghariyals in the Chambal River as part of their ongoing ‘rear and release’ programme.
A total of 90 ghariyals (Gavialis gangeticus), born in 2008 at National Chambal Ghariyal Sanctuary Morena, will be released. According to the last census, there are 928 ghariyals in Chambal passing through three states.
These aquatic species have been declared as a critically endangered by the International Union For Conservation of Nature (IUCN). The issue came to the prominence when more than 65 gharials were found dead within a 35km stretch of the Chambal in December 2007.
According to aquatic life expert Dr Rishikesh Sharma, who was actively involved with the management of the sanctuary from its inception, gharials would not have survived if measures of protection were not tightened.
“The population is on rise now. We have got permission from our headquarters to release the new set of ghariyals this week.” he told DNA.
Dr Sharma pointed out that female ‘gharials’ lay around 30-50 eggs during breeding season and around 2,000-2,500 eggs are found in sand ‘nests’ near the banks of Chambal river every year.
Out of these, the 200-250 eggs are brought to the sanctuary and develop them. The National Chambal Gharial Sanctuary was set up near Morena’s Devari village in 1978, 300 young gharial were released into the Chambal till 2006.
In 2007, the officials had released 25 young ‘gharials being reared at Dang Basai Ghat in the Chambal River which was found to be most suitable for natural habitat of these ‘gharials’. Officials claim sand-mining, poses one of the most significant threats to gharials.
“Sand mining and illegal poaching in a sanctuary near Chambal river in Morena has been posing threat to conservation efforts of the endangered aquatic species” said an official. A proposal to exclude villages in the Chambal sanctuary area was also sent and to confine the sanctuary area to the river.
http://daily.bhaskar.com/article/MP-BHO-forest-dept-to-release-90-ghariyals-in-chambal-2677524.html

Thursday, December 22, 2011

टेम्स ट्रस्ट जनवरी से शुरू करेगा काम

आगरा, जागरण संवाददाता: यमुना नदी को प्रदूषण मुक्त करने के काम की शुरुआत शंकर घाट से होगी। इसकी परिधि इटावा सीमा से लगे डिबोली घाट यानि 57 किमी रहेगी। यह निर्णय टेम्स रिवर रेस्टोरेशन ट्रस्ट (टीआरआरटी) और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की आठ सदस्यीय संयुक्त टीम ने इंटेक और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के स्थानीय प्रतिनिधि आरपी सिंह के साथ लम्बे विचार विमर्श के बाद लिया। चयनित लगभग 57 किमी लम्बे नदी के भाग का अपस्ट्रीम छोर जहां लगभग 22 किमी दूर है, वहीं डाउन स्ट्रीम में 35 किमी दूर। दो दिवसीय प्रवास के बाद इटावा रवाना होने से पूर्व टीम के सदस्यों ने जनवरी से टीआरआरटी का कार्यालय बटेश्र्वर में खोलने का निश्चय किया है। इसके लिए जगह भी प्रस्तावित है। टीआरआरटी के रोबर्ट ओट और डॉ. पीटर का मानना है कि बटेश्र्वर का आरंभिक कार्यस्थल के रूप में चयन इसलिए खास तौर से उपयुक्त है, क्यों कि इटावा, आगरा और फीरोजाबाद के लोगों का आना-जाना यहां बना रहता है। यही नहीं यमुना नदी में पानी की स्थिति भी यहां सुधरी हुई है। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के प्रतिनिधि डॉ. असगर नवाब के अनुसार नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए इन्हीं स्थलों पर मुख्य रूप से काम होना है।
http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=35&edition=2011-12-22&pageno=7#id=111729010771178792_35_2011-12-22

थीमस की तरह यमुना को शुद्ध करेंगे रॉबर्ट

बकेवर, अप्र : आस्था और विश्वास से जुड़ी यमुना नदी को प्रदूषण से बचाने में अब विदेशी हाथ लगेंगे। इंग्लैंड के थेम्स रिवर रेस्टोरेशन ट्रस्ट ने यह बीड़ा उठाया है। ट्रस्ट के परियोजना अधिकारी रॉबर्ट ओट पीटर स्विलिट ने डिभौली घाट पर नारियल फोड़कर योजना का शुभारंभ किया। उन्होंने कहा कि उनका मकसद यमुना नदी को लंदन की थीमस नदी की भांति पवित्र और स्वच्छ बनाना है। इंग्लैंड के उक्त ट्रस्ट और डब्लूडब्लूएफ इंडिया और पीस इंस्टीट्यूट के संयुक्त तत्वावधान में लुप्तप्राय जलचरों को बचाने की कवायद शुरू की गयी है। पहले चरण में भरेह से लेकर बटेश्वर तक सर्वे कराया जायेगा और यमुना के जल में जीवन यापन कर रहे जलचरों की गतिविधियों के ज्ञान के साथ ही उनकी घटती संख्या पर विचार किया जायेगा। परियोजना अधिकारी रॉबर्ट ओट ने बताया कि यमुना नदी के डिभौली घाट पर कछुआ प्रजनन केंद्र की स्थापना राज्य सरकार के सहयोग से करायी जायेगी। इस मौके पर मछली शिकारियों को शिकार के दौरान सावधानी बरतने की सलाह देते हुए अन्य जलचरों को बचाने में सहयोग की अपील की। उन्होंने बताया कि यह कार्यक्रम दो साल चलेगा। इस अवसर पर पीस इंस्टीट्यूट के परियोजना अधिकारी सीताराम, विश्व प्रकृति विधि के संजीव कुमार यादव, वरिष्ठ समन्वयक असगर नबाव, शोधार्थी रवि भदौरिया ने यमुना नदी में एक मोटर वोट को भी छोड़ा। जिसका नाम थीमस नदी के नाम पर थमसिंग वोट रखा गया। सुखराम निषाद, रिंबू खान, रवींद्र त्रिपाठी, शिवकुमार मुन्ना, राजेंद्र बाबा, ध्रुव नारायन त्रिपाठी ने विचार व्यक्त किये।

http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=22&edition=2011-12-22&pageno=6#id=23730102906640_22_2011-12-22

Monday, December 19, 2011

टेम्स की तर्ज पर होगा यमुना शुद्धीकरण

आगरा, जागरण संवाददाता: यमुना को मूल स्वरूप में भले न लाया जा सके, लेकिन उसकी बदहाली काफी हद तक कम की जा सकती है। यह कहना है पीस इंस्टीट्यूट चैरिटेबल ट्रस्ट (पीआईसीटी) के निदेशक और प्रख्यात पर्यावरणविद् मनोज मिश्र का। वे लंदन के टेम्स रिवर रेस्टोरेशन ट्रस्ट (टीआरआरटी) के सहयोग से कालिंदी को साफ करने के लिए अभियान के तहत दो दिवसीय यात्रा पर आगरा आये हुए थे। हाथी घाट पर यमुना बचाओ आंदोलन के धरनास्थल पर जागरण से वार्ता करते हुए उन्होंने बताया कि फिलहाल बटेश्र्वर के सियांच, फरह के गढ़ाया और शेरगढ़ के अडेया गांवों के नदी तटीय क्षेत्र में नदी शुद्धिकरण का कार्य किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि टीआरआरटी का इस काम में सहयोग अवश्य ले रहे हैं, लेकिन टेम्स और यमुना की तुलना प्रासंगिक नहीं है। फिलहाल उनका उद्देश्य नदी में गंदा पानी जाने से रोकना है। उधर, इंग्लैंड की एक टीम यमुना शुद्धिकरण अभियान के लिये मंगलवार को बटेश्वर पहुंच रही है। यह नदी संरक्षण के अलावा जल जीवों की स्थिति का आकलन भी करेगी। डब्लूडब्लूएफ इंडिया के स्थानीय कन्वीनर आरपी सिंह के अनुसार संस्था के प्रतिनिधियों द्वारा टेम्स के अनुभवों के आधार पर यहां के लिये भी कार्ययोजना बनायी जायेगी। नदी तालमेल परियोजना यमुना के दोनों ओर के भागों को प्रदूषण मुक्त व व्यवस्थित करने के उद्देश्य से जो काम किए जाने हैं, उनमें स्थानीय कार्यशील लोगों को अभियान से जोड़ना, तटीय क्षेत्रों में रहने वाले समूहों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना मुख्य है।

Tuesday, November 22, 2011

A step to save rare Gangetic dolphins


KANPUR: "It was just a memorable moment for us. We came across three Gangetic river dolphins while on three hours cruise down the Ganga at Vikramshila Gangetic Dolphin Sanctuary in Bhagalpur in Bihar," Venkatesh and Upendra said.

They returned after attending an awareness session on protecting the Gangetic river dolphins, considered an endangered species. The two were accompanied by their educator Chandrapal Singh, a volunteer of Society For Conservation of Nature and schoolteacher Ganesh Dutt.

A seminar was organised by the Centre for Environment Education ( CEE), north, in co-ordination with Vikramshila Biodiversity Research and Education Centre (VBREC) at Vikramshila Dolphin Sanctuary in Bhagalpur in order to encourage youth conserve Gangetic river dolphins.

"The idea behind this session was to make children conservationists and to change their mindset in becoming more proactive towards conservation of rare Gangetic river dolphins," said, Chandrapal Singh.

"It session very successful and the response from these youngsters was awesome. It was a two-day session and around 30 students from West Bengal, Uttar Pradesh, Bihar and Assam took part in it,"said Ganesh Dutt, a teacher of Gyan Sthali School, who had accompanied the students.

"According to wildlife researchers, the population of endangered Gangetic river dolphins has grown to 223 from last year's figure of 175 at the Vikramshila Gangetic Dolphin Sanctuary, India's only dolphin sanctuary, located in Bhagalpur," Upendra, another participant, said. "We would now spread awareness in the recently formed dolphin clubs to increase the count of aquatic animals here in our state. It was just a wonderful experience and we had interaction with students of other states like West Bengal and Bihar," he added.

Gangetic river dolphins fall under Schedule I of the Indian Wildlife (Protection) Act 1972 and declared an endangered species by the International Union for Conservation of Nature (IUCN).

Sitaram Tagore, an expert on Gangetic river dolphins, who is working in Chambal upstream for dolphin conservation, said that extensive sand mining is killing dolphins in Chambal, particularly in Bharra and Morena districts of Madhya Pradesh.

The Gangetic river dolphins are one of the four freshwater dolphins in the world. The other three are found in Yangtze river in China, Indus in Pakistan and Amazon in South America.

The Gangetic river species, found in India, Bangladesh and Nepal, is blind and finds its way and prey in the river waters through 'echoes'.

A cluster of around 25 schools was formed in Etawah to work in collaboration with an NGO. The programme included orientation and training for each student and educator, he added.

There are about 2,000 Gangetic river dolphins in India.

The dolphins, known as platanista gangetica aka 'susu', are rare. Earlier, these were found in Ganga river basin and all linked rivers. But now, its habitat is limited to a few rivers. Brahmaputra, Ganga and Chambal rivers are its natural habitat.

Link
http://timesofindia.indiatimes.com/city/kanpur/A-step-to-save-rare-Gangetic-dolphins/articleshow/10817374.cms

Sunday, November 13, 2011

Gangetic dolphins highly endangered


KANPUR: A couple of students from Etawah, selected by the Centre for Environment Education (CEE), north, are to visit Vikramshila Biodiversity Research and Education Centre (VBREC) and Vikramshila Dolphin Sanctuary in Bhagalpur district of Bihar to attend an awareness session on protecting the Gangetic river dolphins, considered an endangered species.
District Inspector of School, Etawah, Gyan Prakash Singh told TOI that Venkatesh Sharma and Sankalp Dwivedi, students of class X at Gyan Sthali Academy, Etawah and their educator Chandrapal Singh, a volunteer of an NGO, Society for Conservation of Nature, will leave for Bhagalpur on Monday night to take part in the two-day awareness session on protecting the Gangetic river dolphins.
"A cluster of nearly 25 schools was formed in the district to work in collaboration with the NGO. The programme included orientation and training for each student and educator," he added.
"It's a unique project of participation of children living near the National Chambal Sanctuary in Etawah region, where according to wildlife experts, the present number of dolphins is believed to be 95 as per a survey conducted recently. The region, which is a habitat of Gangetic river dolphin, includes districts like Faizabad, Allahabad, Varanasi and Bahraich. These districts form part of the dolphin conservation programme," said Rajiv Chauhan, secretary of the NGO.
The session will commence on November 15. Students and their educators selected from nearly 20 districts across the four states, including Uttar Pradesh, Bihar, West Bengal and Assam. There, they will be educated on the dwindling number of Gangetic river dolphins, their breeding period, breeding requirements and protection, besides the importance of not disturbing the habitat of aquatic animals.
It is also planned to rope in the trained students in recently constituted dolphin clubs in schools selected under the programme. This will help students to share their learning, collections, displays and creativeness pertaining to aquatic wildlife.
Recently, 20 districts in Uttar Pradesh, Bihar, West Bengal and Assam have been identified for running a two-year-long Gangetic river dolphin conservation education programme in north, east and north-eastern regions of the country.
There are about 2,000 Gangetic river dolphins left in India. The Gangetic river dolphins, known as platanista gangetica, aka 'Susu', are rare. Earlier, it was found in Ganga river basin and all the linked rivers. But now, its habitat is limited to a few rivers. Brahmaputra, Ganga, Chambal rivers are its natural habitats. Gangetic river Dolphins have been included in the Schedule-I of the Wildlife (Protection) Act, 1972.

Source http://timesofindia.indiatimes.com/city/kanpur/Gangetic-dolphins-highly-endangered/articleshow/10713828.cms

Sunday, October 23, 2011

Chambal drinking water diverted to Ghana national park

Palak Nandi, TNN Oct 9, 2011, 05.26AM IST
JAIPUR: Good new trickles in for the migratory birds at the Keoladeo Ghana National Park, which will soon receive about 300 million cubic feet (mcft) water through the Chambal Dholpur-Bharatpur drinking water project. The water is expected to ensure a good season for both the winged visitors and bird watching enthusiasts.
The Chambal Dholpur-Bharatpur drinking water project, primarily a PHED project, is designed to resolve the acute drinking water crisis in the districts of Bharatpur and Dholpur. The pipelines for it have been laid and are being tested for leaks, sources said.
Though the park will receive its share of water from the project this year; the forest officials are worried that the happiness might be short-lived. The water resources department had agreed in 2006 to release 310 mcft water every year for the park till 2010. At that time, the Goverdhan Drain Project was to start functioning, but was delayed.
Recently, the Ghana Bachao Sanyukt Shangrash Samiti had held a dharna, demanding that water be immediately released for the park. "The park needed water by September, since it was not available open-billed storks abandoned their nests and left. The Chambal water last the winter season but the park needs a permanent solution and quickly,'' said Rakesh Fojdar, secretary of the Samiti.
The senior officials of the water resources department said, the priority of the Chambal project is providing drinking water to Bharatpur and the surrounding villages, but not the park. The district would receive up to 4 mcft water every day under the project, all of which would be distributed for drinking purposes after three months. The main reason for diverting water to the national park now is because the water tank for storing water is not ready and also there is a threat the park may lose its heritage site status.
"For now, the water storage tank in Bharatpur is not ready and the park requires water, so drinking water is being sent there. By December, the tank will be ready and the Goverdhan Drain project will be functional and would start providing water to the park by next monsoon. The Chambal water would be used for the purpose it is purported,'' a senior official said.
The park requires nearly 650 mcft of water, it has so far only received 50 mcft from Ajam dam in September. "Water from Chambal has been released and is likely to reach the park by Saturday evening. About 300 mcft water would be sent to the park in the next three months, it will benefit the migratory birds that come to the park during winter,'' said a senior forest official. He also voiced his concern that though the Goverdhan drain will provide about 300 mcft of water, the park could still face a shortage. "Even if Chambal provides some water, it would be helpful but that is unlikely,'' he added.
Jaipur: Good new trickles in for the migratory birds at the Keoladeo Ghana National Park, which will soon receive about 300 MCFT water through the Chambal Dholpur-Bharatpur drinking water project. The water is expected to ensure a good season for both the winged visitors and bird watching enthusiasts.
The Chambal Dholpur-Bharatpur drinking water project, primarily a PHED project, is designed to resolve the acute drinking water crisis in the districts of Bharatpur and Dholpur. The pipelines for it have been laid and are being tested for leaks, sources said.

Though the park will receive its share of water from the project this year; the forest officials are worried that the happiness might be short-lived. The water resources department had agreed in 2006 to release 310 MCFT water every year for the park till 2010. At that time, the Goverdhan Drain Project was to start functioning, but was delayed.
Recently, the Ghana Bachao Sanyukt Shangrash Samiti, had held a dharna, demanding that water be immediately released for the park. ''The park requires water by September and as it was not available, open-billed storks had abandoned their nests and left. The Chambal water might save the winter season but the park needs a permanent solution fast,'' said Secretary of the Samiti Rakesh Fojdar.
According to senior officials of the water resources department, the priority of the Chambal project is providing drinking water to Bharatpur and surrounding villages and definitely not the park. The district would receive upto 4 MCFT water every day under the project, all of which would be distributed for drinking purposes after three months. For now, the main reason for diverting the water to the national park is the fact that the water tank for storage and distribution of the water is not ready and because there is a large threat looming over the park which might loose its world heritage site status.

Source http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2011-10-09/jaipur/30260003_1_drinking-water-phed-water-storage-tank


Monday, July 25, 2011

चंबल संरक्षण समितियों में विशेषज्ञ शामिल नहीं

सचिन शर्मा.
भोपाल। चंबल नदी और उसमें पलने वाले वन्यजीवों के संरक्षण के लिए केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय (एमओईएफ) के अधीन तीन समितियों का गठन किया गया है। इनमें केंद्रीय अधिकारियों के अलावा मप्र, उप्र और राजस्थान के सरकारी अधिकारियों और गैर सरकारी संगठन के लोगों को शामिल किया गया है।
एमओईएफ द्वारा बनाई गई पहली समिति के चेयरमेन केंद्र में एडीजी (वन्यजीव) जगदीश किशवन को बनाया गया है। इसके अलावा वल्र्ड वाइल्ड लाइफ फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) के परीक्षित गौतम और वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूआईआई) के कई वैज्ञानिकों को भी इसमें शामिल किया गया है। इसमें प्रत्येक राज्य के पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) भी मानद रूप से सदस्य होंगे। इसी तरह दूसरी समिति में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के सीईओ रवि सिंह को चेयरमेन बनाया गया है, जबकि डब्ल्यूआईआई के वरिष्ठ वैज्ञानिक बीसी. चौधरी को सह अध्यक्ष बनाया गया है। तीसरी समिति में सभी तीनों राज्यों के वन मंडलाधिकारियों को और स्थानीय गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों को शामिल किया गया है।
किसी भी प्रदेश से विशेषज्ञ शामिल नहीं
इन तीनों ही समितियों में तीनों संबंधित प्रदेशों के किसी भी वन्यजीव विशेषज्ञ को शामिल नहीं किया गया है। इनमें ऐसे भी विशेषज्ञ नहीं हैं जिन्होंने चंबल पर काम किया हो। वहीं दूसरी ओर मध्यप्रदेश के डॉ. आरजे राव चंबल पर लंबे समय से काम कर रहे हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर के वैज्ञानिक हैं। चंबल के घडिय़ालों और कछुओं पर उनके द्वारा किए गए शोध दुनिया भर में सराहे गए हैं। उन्हीं के साथ चंबल के अध्ययन से काफी समय से जुड़े सीताराम टैगोर भी इन समितियों के सदस्य नहीं बनाए गए। उप्र के चंबल मैन कहलाए जाने वाले इटावा के राजीव चौहान को भी इन समितियों से दूर रखा गया है।

Source http://www.bhaskar.com/article/c-58-1566637-2292606.html?C3-BHL=

Tuesday, July 19, 2011

Saturday, June 18, 2011

People throng Chambal after birth of gharials

ourists are thronging the Chambal sanctuary to take a look at the newly-born 1,500 baby gharials, writes Vivek Trivedi

The locals of Chambal region these days are thronging the Katannipura-Barolighat area of the Chambal river flowing through Veerpur Tehsil of Sheopur district in Madhya Pradesh to witness the springing plays of newly born gharial babies, around 1.500 in number.

The newly developed gharial-breeding centre at this ghat continues to be a centre of attraction with the birth of nearly 1,500 baby gharials in the last one fortnight. The local villagers continue to visit the ghat to watch the interesting playful activities of these newly born baby gharials.

The baby boom which has enlivened the Chambal river sanctuary, spread across the boundaries of Madhya Pradesh, Rajasthan and Uttar Pradesh could be termed significant, as the sanctuary that boasted close to 1,500 gharials only a decade ago had been reduced to a mere 200 adult gharials.

Fencing has been erected on the bank of the Chambal river for safe movement of the newly born baby gharials in this project developed in the Raghunathpur area. The locals including the children are deriving immense pleasure from the scene of baby gharials jumping into the river water from the fencing. At this new gharial breeding centre shifted recently from Devari of Morena to Katannipura-Barolighat, Chambal, as many as 46 female gharials have given birth to 1,500 baby gharials during the period between May 17 and May 30, 2011.

Probably, it is for the first time when Sheopur district has made such major achievement of gharial rearing. The female gharials had laid 52 eggs in the sand at 46 places in an area of nearly 2 km at Katannipura ghat in Chambal region between March 14 and March 27. After a gap of 60-65 days, baby gharials came out from the eggs.

The entire staff of the gharial project including ranger RK Sharma and Forest Guard Jagdish Batham are giving top priority to taking care of these newly-born baby gharials. The gharial is regarded as a very simple and harmless water animal of crocodile species. Gharial catches fish for its food needs. Forest guard Jagdish Batham says that in his lifetime he has never heard of any incident about the attack of gharial on human being or other animal.

However the situation was never the same like it is at present at Chambal sanctuary. The gharial population in this river had suffered a jolt in three months starting from December 2007 to February 2008, as more than 100 gharials had perished after being affected by an unknown 'toxin'. Mass deaths of gharials was reported for the first time from Barchauli village in Etawah range of the sanctuary on December 8, 2007.

Different authorities had made best efforts to ascertain the reasons behind these mysterious deaths but nothing concrete could be established. The special crisis management team formed for unraveling the reasons of unexplained deaths, though it failed to figure out the origin, nature and spread of the toxin although it opined that the Yamuna water could be the probable cause of Chambal's pollution.

Meanwhile, after this disaster the authorities at Chambal sanctuary has started intensive efforts to provide better atmosphere to the amphibians of Chambal river specially to the endangered gharials. For ensuring free movement of gharials inside a protected zone, the sanctuary has prepared a plan for reserving a 4,500 kilometres long passage within the Chambal area from Ranipura to Seopur district.

The Union Ministry of Forest and Environment had sought details of thousands of acres of land belonging to more than two dozens villages in Ater Tehsil district Bhind, for converting it into a protected zone for gharials.

As far as figures are concerned, Madhya Pradesh has lost 47 gharials in the portion of the Chambal sanctuary that falls inside its territory between 2007 and 2010. State forest officials maintain that a major chunk of the mortalities occurred in December 2007 and January 2008, when an unknown toxic substance had led to mass casualties among gharials.

The sanctuary, known for housing rare species like gharial, crocodile and dolphins is spread across the States of Madhya Pradesh, Uttar Pradesh and Rajasthan. Union Minister of State for Forest and Environment Jairam Ramesh a few months back had informed the Lok Sabha that the sanctuary has lost 127 gharials in the period 2007-10. Five crocodiles also succumbed due to various reasons during the same period, the Minister elaborated.

Of these casualties, Madhya Pradesh reported 47; Rajasthan reported just two, while Uttar Pradesh recorded the highest number of 78 casualties. The Minister informed that there are about 800 gharials and 300 crocodiles in the National Chambal Sanctuary (NCS).

According to the Minister the deaths could be attributed mostly to the reasons like natural death, poaching and possible effects of some toxins.

When quizzed over the deaths, NCS Superintendent SC Bhadauria clarified the reason behind high mortalities by informing that around 35 gharials had died in the sanctuary areas falling in MP by the end of 2007 and beginning of the following year, when scores of gharials had been affected with an unknown toxic substance across the sanctuary.

He informed that barring this unfortunate incident; the sanctuary has only witnessed a handful of mortalities caused by natural reasons in the last few years. Bhadauria informed that after the 2007 incident, the Forest Department has stepped up monitoring in the sanctuary and experts have provided special training to veterinarians in the area.

Reason for gharial death unknown

A gharial measuring around seven to eight feet was found dead in the Chambal river, on the border of Madhya Pradesh and Rajasthan in February. The exact reasons behind the death are not known till now. The area from where the mortality has been reported is situated at some distance from the Chambal bridge. The reason of death of gharial was not known but locals claim that illegal mining has been going on for years on the banks of Chambal river, which is disturbing the ecology in the area.

Field level surveyof sanctuary area

The National Tri-State Chambal Sanctuary Management Coordination Committee formed last year had in February decided to conduct a field level survey of the Chambal sanctuary area, spread into the boundaries of Madhya Pradesh, Uttar Pradesh and Rajasthan within two months. The meet held at New Delhi stressed that Gharial is the most critically endangered large animal in India, much more than the elephant, tiger, Indian rhino, Ganges river dolphin, lion-tailed macaque, snow leopard, Nilgiri tahr, pygmy hog or Asiatic lion. The participants of the meeting expressed concern over the recent assessments, which indicate that only a small population of less than 200 breeding adult, survive at present in India. 

http://www.dailypioneer.com/346794/People-throng-Chambal-after-birth-of-gharials.html

Thursday, June 16, 2011

Alert villagers save injured sarus chick's life

KANPUR: Alert villagers of Jainpur Naagar in Etawah district helped rescue a sub-adult sarus which had sustained wounds on one of its legs on Wednesday.

The good samaritans travelled all the way from their Jainpur Naagar village to the district forest department to hand over the bird to the officials concerned for the first aid.

The one-year-old juvenile had received multiple fractures on its left leg. The bird was found making loud calls and lying in a field partially submerged in water in Jainpur Naagar on Wednesday morning.

"One Kallu Yadav, a local, found a one-year-old saras chick who was injured and unable to fly. With the help of villagers, Yadav caught hold of the bird and rushed it to the Etawah forest department," said a senior forest official while talking to TOI.

"The bird was writhing in pain. It was unable to fly so after rescuing it, I gave it some feed and water," said Kallu.

Kallu then called up the forest department people who asked him to reach the district forest department campus immediately.

Jaim Ahmed, sub-divisional officer, Etawah forest department, said, "The bird, which has almost attained one year of age, is under close observation and a raw plaster type of bandage has been done on its left foot. It will be released as soon as it recovers. However, initial investigations indicate that it might have sustained fractures after getting entangled in a steel wire used for fencing in some nearby industrial unit and it got stuck probably while landing in search of food or water," he said. Dr A K Srivastava, senior veterinary officer, is treating the bird.

"This was the second incident in which a sarus chick was found injured in the region. These are the cases which have been coming to light and reported to us by villagers following awareness campaigns to conserve the state bird sarus," said Sudarshan Singh, district forest official.

"As soon as a sarus becomes adult, it leaves its territory along with other elders in search of food and it is during this period that most of the casualties take place," said Dr Rajiv Chauhan, secretary, Society for Conservation of Nature.

About a fortnight ago, one sarus crane had died after it hit high-tension wires. The incident had taken place at Vicharpura village. The sarus crane, a bird specie residing in wetlands, is categorised as vulnerable on the 'IUCN red list'.

"The sarus crane falls under the schedule 1 of the Wildlife (Protection) Act 1972," Dr Chauhan said,

"To protect these birds from electrocution, people must use coated wires particularly in Etawah and Mainpuri districts where nearly 3,000 sarus cranes are nesting," said Dr Chauhan.
 

Wednesday, May 25, 2011

नदियों के किनारे कंस्ट्रक्शन पर लगेगी रोक (Nav Bharat Times/Noida- 20 May 2011)

विनोद शर्मा ॥ नोएडा

हिंडन और यमुना समेत देश की सभी नदियों के किनारे बांध क्षेत्र की सीमा के अंदर चल रहे निर्माण कार्यों पर गाज गिर सकती है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने गैरसरकारी संगठनों की मांग पर रिवर रेग्युलेशन जोन का ड्राफ्ट बनाने की तैयारी शुरू कर दी है। ड्राफ्ट तैयार करने के लिए 10 सदस्यीय एक कमिटी गठित की गई है। पर्यावरण मंत्रालय के विशेष सचिव जे. एम. मॉस्कर इस कमिटी के चेयरमैन बनाए गए हैं। इस कमिटी में पर्यावरण के विशेषज्ञ, वैज्ञानिक और प्रफेसर और एडवोकेट को भी शामिल किया गया है। इस जोन के बन जाने के बाद नदी के रिवर फ्लड प्लेन एरिया को सेफ रखा जा सकेगा। तब नदियों के किनारे बेशकीमती जमीनों के आस-पास प्लान बनाते समय अप्रूवल लेना होगा, इसमें पब्लिक ऑब्जेक्शन भी होगा।

केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से जुड़े आधिकारिक सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के अनुसार इस कमिटी को लेकर पब्लिक की तरफ से काफी दिनों से डिमांड चल रही थी। हालांकि केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय में सबसे पहले रिवर रेग्युलेशन जोन बनाने की डिमांड 23-24 नवंबर 2001 में दिल्ली में हुई एक वर्कशॉप के दौरान उठी थी। इसके बाद मामला ठंडा पड़ गया। 12 मार्च को जब जापान में भूकंप आया तो यमुना जियो अभियान के कन्वेनर मनोज मिश्रा ने भी प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को लेटर लिखकर भारी जनतबाही से बचाने के लिए रिवर रेग्युलेशन जोन बनाने की डिमांड की थी। यमुना जियो अभियान ने अपने लेटर में कहा था कि पूर्वी दिल्ली और नोएडा, ग्रेटर नोएडा और गाजियाबाद में इन दिनों डूब क्षेत्र में बहुमंजिला बिल्डिंगें बनाई जा रही हैं। इनमें 60 मंजिला बिल्डिंग का भी जिक्र किया गया था। एनजीओ ने कहा था कि जब यह एरिया भूकंप की दृष्टि से बेहद संवेदनशील हैं, तब इतनी ऊंची बिल्डिंगों की इजाजत डूब क्षेत्र में देना लोगों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ होगा। इस लेटर के बाद दिल्ली में यमुना बचाओ आंदोलन की तरफ से जंतर-मंतर पर धरना प्रदर्शन किया गया। 13 अप्रैल को सेव यमुना मूवमेंट की तरफ से भी यमुना को बचाने के लिए जो डिमांड लेटर दिया गया, इसमें रिवर रेग्युलेशन जोन का ड्राफ्ट जल्द से जल्द बनाने की मांग की गई थी। 11 मई को केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश के निर्देश पर रिवर रेग्युलेशन जोन एक्ट का ड्राफ्ट बनाने का नोटिफिकेशन जारी कर दिया।

इस नोटिफिकेशन में चेयरमैन जे . एम . मॉस्कर के अलावा अडिशनल सेक्रेटरी मीरा महर्षि , एडवाइजर डॉ . नलिनी भट्ट , महाराष्ट्र सरकार में सेक्रेटरीपर्यावरण मंत्रालय श्रीमति वाल्सा . आर . नायर सिंह , तमिलनाडु से श्रीलयम अंबू , केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व वैज्ञानिक आर . सी . त्रिवेदी , जेएनयू केरिटायर्ड प्रफेसर ब्रिज गोपाल , आईआईटी रुड़की के इंजीनियर डॉ . जी . जे . चक्रवर्ती , लीगल एडवाइजर मोहम्मद खान और डॉ . ए . सेंटिलवेल को शामिलकिया गया ह ै।

Water crisis in Chambal

  

A Story published in Naidunia, Gwalior dated 24 May 2011

Monday, May 16, 2011

पहली बार जलाभिषेक में हर जिले का पानी का बजट और कार्यों का लक्ष्य होगा


जलाभिषेक अभियान को लक्ष्य एवं परिणाम आधारित बनाने के लिए पहली बार हर जिले का पानी का बजट बनाने के साथ ही भागीरथ किसानों के कार्यों और पुरानी तथा नई जल-संरचनाओं के सुधार और निर्माण कार्य के लक्ष्य तय किए गए हैं। छठे जलाभिषेक अभियान में प्रदेश के पचास जिलों में भागीरथ कृषकों द्वारा सोलह हजार कार्य किए जाएंगे वहीं पच्चीस हजार से अधिक पुरानी तथा नई जल संरचनाओं को बनाया जाएगा।
पंचायत एवं ग्रामीण विकास तथा सामाजिक न्याय मंत्री श्री गोपाल भार्गव ने यह जानकारी देते हुए बताया कि जलाभिषेक अभियान के जमीनी स्तर पर प्रभावी क्रियान्वयन के उद्देश्य से पहली बार हर जिले का पानी का बजट बनाया गया है। बजट का उपयोग बेहतर ढंग से करने के लिए भागीरथ कृषकों द्वारा किए जाने वाले जल-संरचनाओं के कार्य एवं पुरानी जल-संग्रहण संरचनाओं के सुधार तथा नए कार्यों के जिलेवार लक्ष्य तय किए गये हैं। लक्ष्यों के आधार पर ही जलाभिषेक अभियान के क्रियान्वयन की समीक्षा होगी।
भागीरथ कृषकों के कार्यों का लक्ष्य
जिलेवार तय किए लक्ष्य के अनुसार भागीरथ कृषक के कार्य अलीराजपुर में 100, अनूपपुर में 100, अशोक नगर 850, बालाघाट 100, बड़वानी 200, बैतूल 400, भिण्ड 100, भोपाल 100, बुरहानपुर 200, छतरपुर 800, छिन्दवाड़ा 250, दमोह 250, दतिया 150, देवास 1500, धार 500, डिण्डोरी 100, गुना 100, ग्वालियर 150, हरदा 100, होशंगाबाद 100, इन्दौर 400, जबलपुर 100, झाबुआ 100, कटनी 170, खण्डवा 400, खरगोन 400, मण्डला 100, मंदसौर 200, मुरैना 100, नरसिंहपुर 150, नीमच 400, पन्ना 100, रायसेन 150, राजगढ़ 600, रतलाम 400, रीवा 150, सागर 1130, सतना 100, सीहोर 800, सिवनी 150, शहडोल 100, शाजापुर 500, श्योपुर 150, शिवपुरी 300, सीधी 100, सिंगरौली 100, टीकमगढ़ 150, उज्जैन 600, उमरिया 250 और विदिशा में भागीरथ कृषक के लिये 500 कार्य का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
पुरानी जल-संग्रहण संरचनाओं का सुधार एवं नई का निर्माण
पुरानी एवं नई जल-संग्रहण संरचनाओं के सुधार एवं निर्माण के लिये भी जिलेवार तय किए लक्ष्य इस प्रकार हैं; अलीराजपुर 300, अनूपपुर 1100, अशोक नगर 250, बालाघाट 1100, बड़वानी 350, बैतूल 600, भिण्ड 220, भोपाल 210, बुरहानपुर 150, छतरपुर 350, छिन्दवाड़ा 830, दमोह 350, दतिया 250, देवास 210, धार 1200, डिण्डोरी 230, गुना 375, ग्वालियर 370, हरदा 350, होशंगाबाद 100, इन्दौर 300, जबलपुर 350, झाबुआ 480, कटनी 1800, खण्डवा 350, खरगोन 620, मण्डला 1400, मंदसौर 850, मुरैना 475, नरसिंहपुर 250, नीमच 290, पन्ना 300, रायसेन 300, राजगढ़ 190, रतलाम 150, रीवा 970, सागर 1050, सतना 410, सीहोर 2380, सिवनी 390, शहडोल 410, शाजापुर 700, श्योपुर 250, शिवपुरी 300, सीधी 360, सिंगरौली 200, टीकमगढ़ 230, उज्जैन 360, उमरिया 210 और विदिशा जिले में 380।
मनोज पाठक
http://www.mpinfo.org/mpinfonew/newsdetails.aspx?newsid=110516N1

NGO seeks Prime Minister's help to rid Yamuna bed of encroachers (The Hindu/New Delhi- 13 May 2011)

Staff Reporter

Unwilling to let the Delhi Transport Corporation stake claim to a portion of the river bed and use it for a bus depot, the Yamuna Jiye Abhiyan, a non-government organisation, has written to the Prime Minister, reiterating the need to rid the floodplain of encroachments.

In the letter, the YJA has supported its claims by drawing attention to the information procured through the Right to Information Act. The NGO pointed out that RTI responses received from DDA show the land was meant for recreational purposes. It also says that DDA has not received any request from the DTC or the Transport Department for identification and allotment of land for shifting of the bus depot currently functioning opposite Indraprastha Park on Ring Road.

The NGO claims there is enough evidence to prove that the portion of land under DTC's occupation is part of the river bed. It has urged the Prime Minister to direct the Delhi Government to remove the temporary bus depot from the river bed.

L-G's order

“Such an act would be in accordance with the directions of the Lieutenant-Governor of Delhi who had allowed the temporary occupation only for the duration of the Commonwealth Games-2010 and that too in the light of the security needs of the Games. This act would also be in tune with the directions dated December 3, 2010, of the statutorily created Delhi Urban Arts Commission which had advised the DTC to dismantle its structures and to vacate the river bed. This act would also be in tune with the directions of the Delhi High Court of December 2005 mandating removal of all structures from within 300 m of the river on either side. In pursuance of which order, thousands of jhuggi-jhonpri structures from the river bed have already been removed…” the letter says.

YJA convenor Manoj Misra said there is land available elsewhere in the city for the bus depot but the Government seems reluctant to clear the river bed. “There is enough space at the nearby Mayur Vihar Phase I City Centre where under the Master Plan of Delhi there is already a sprawling space provided for a bus depot, and which was even suggested way back in 2008 to the DTC by DDA.”

He went on to add: “The DDA itself has informed that the land use of the said area, where the depot stands is green (recreation). Also, the site is dangerous as a high-tension line goes right over it and a mishap can result in an avoidable catastrophe. The bus depot is symptomatic of the wrong and poor planning on the part of the DTC and the Public Works Department (that has raised the depot on behalf of DTC). The entry and exit for the buses from the said depot is fraught with danger as any bus entering from the Ashram side into the depot has to cut through the flowing traffic on National Highway 24 while any bus exiting from the depot again has to cut through the normal flow of the traffic on Ring Road to either proceed towards Ashram or take a U-turn under the flyover for going to Rajghat. This fact also points to the wrong and poor planning in identifying this site for the depot,” he said.


“The land was meant for recreational purposes….enough space at Mayur Vihar for the depot”

Expert panel in offing to monitor riverfront realty growth (Times of India/New Delhi- 13 May 2011)

NEW DELHI: Regulations to govern riverfront development could be in the offing as the environment ministry is setting up an expert group to seek its opinion about it.

There has been rampant development on riverfronts in cities; displacing poor and building expensive real estate. The ministry's moves may come in as a key route to regulate how the rivers are managed in the cities. Now, the rules stipulate only regulation of coastal zone lands under the Environment Protection Act. The same Act can help in formulating other regulations.

In Delhi, the development on the Yamuna's bank – Akshardham Temple and the Commonwealth Games Village —led to litigation and criticism for eating into the poisoned river's natural flow. Besides, the poor had to make way for lucrative real estate.

Monday, May 2, 2011

फिर भी घट गया जंगल

भोपाल. जंगल बढ़ाने की योजनाओं पर 10 साल में 200 करोड़ रुपए खर्च करने के बावजूद प्रदेश में 1230 वर्ग किलोमीटर सघन वन घट गया। यह खुलासा फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (एफएसआई) की ताजा रिपोर्ट में हुआ है।

रिपोर्ट में 1997 से 2007 के बीच का विश्लेषण किया गया है। प्रदेश में 1997 में 42 हजार 884 वर्ग किमी क्षेत्र में सघन वन थे। दस साल बाद 2007 में यह क्षेत्रफल घटकर 41654 वर्ग किमी रह गया।

गौरतलब है कि वन विभाग जंगल बढ़ाने के लिए हर साल एक करोड़ पौधे रोपने पर 20 करोड़ रुपए खर्च करता है। विभाग ने 2006 से 2009 के बीच 5 करोड़ 28 लाख 57 हजार पौधे रोपे।

विभाग का दावा है कि इनमें से 3 करोड़ 81 लाख 95 हजार पौधे जीवित बचे हैं। बीते साल पौधारोपण के बजट में 36 करोड़ रुपए थे जिनमें से 18 करोड़ रोपणी से और शेष 18 करोड़ केंद्रीय परियोजना से मिले थे।

इसके अलावा जंगल बढ़ाने के लिए वन विभाग लाखों की संख्या में पौधे गैर सरकारी संगठनों को भी बांटता है।

वनीकरण से करेंगे भरपाई

हां, सघन वन का क्षेत्र कम हुआ है। यह कटाई या बांध आदि बनने के समय जंगलों को क्षति का नतीजा है। इसकी भरपाई के लिए क्षतिपूर्ति वनीकरण की योजना शुरू की है। अगले 8-10 सालों में हम सघन वन का खोया हुआ क्षेत्र वापस प्राप्त कर लेंगे।
रमेश के दवे, प्रधान मुख्य वन संरक्षक, मप्र

http://www.bhaskar.com/article/MP-OTH-lighter-woods-yet-2061903.html

मोरों की मौत पर चक्काजाम

ग्वालियर. शहर से 19 किमी दूर निरावली गांव में रविवार को 19 और मोरों की मौत पर ग्रामीणों में उबाल आ गया। उन्होंने मोरों के शव के साथ एबी रोड पर ट्रैफिक जाम कर दिया। साढ़े तीन घंटे तक चले ट्रैफिक जाम से इस महत्वपूर्ण हाईवे पर चार किमी तक एक हजार से अधिक वाहनों की कतारें लग गईं।

ग्रामीणों की मांग थी कि मोरों की मौत के लिए जिम्मेदार रायरू डिस्टलरी को यहां से हटाया जाए, इसका गंदा पानी राष्ट्रीय पक्षी के लिए काल बन गया है। उल्लेखनीय है कि इससे पहले 23 अप्रैल को 26 मोरों की मौत हो चुकी है।
19 और मोरों की मौत हो गई निरावली गांव में

3.30 घंटे ट्रैफिक जाम रखा गुस्साए ग्रामीणों ने

04 किमी लंबे जाम में फंसे 1000 से अधिक वाहन

प्यास से रहे बेहाल

निरावली गांव में मोरों की मौत से नाराज ग्रामीणों ने एबी रोड पर साढ़े तीन घंटे तक ट्रैफिक जाम कर प्रशासन पर तो कुछ हद तक दबाव डालने में सफलता पा ली, लेकिन पांच हजार यात्रियों को धधकती गर्मी नंे बेहाल कर दिया। चार किमी तक वाहनों की कतारें लगने से इसमें सवार लोगों के लिए यह जाम किसी सजा से कम नहीं था। बच्चे व महिलाएं चिलचिलाती धूप में परेशान होती रही।

निरावली के ग्रामीणों द्वारा चक्काजाम करने से सड़क की दोनों तरफ वाहनों में सवार पांच हजार लोग प्यास से बेहाल रहे। पानी के लिए लोग खेतों पर नलकूप ढूंढने निकल पड़े। सबसे बुरा हाल बच्चों व महिलाओं का रहा, जिनके वाहन के पास ढाबे थे, वहां तो लोगों ने पानी की बोतल व पाउच खरीद कर प्यास बुझाई लेकिन जहां दूर-दूर तक पानी नहीं था,वे बोतल लिए भटक रहे थे। भीषण गर्मी के कारण लोगों को बार-बार प्यास लग रही थी।

लोग वाहनों से बाहर आकर सड़क किनारे पेड़ों के नीचे बैठ गए। एक स्थान पर नलकूप चलता देख लोग उधर दौड़े और बोतलों में पानी भरने वालों की भीड़ लग गई। वहीं ट्रैफिक जाम खुलवाने में पुलिस असहाय दिखी। क्योंकि ग्रामीण उनकी कोई बात सुनने को राजी नहीं थे।

विसरा जांच आने में लगेगा एक माह का समय: 23 अप्रैल को 26 मोरों की मौत हो गई थी। इन मोरों का पोस्टमार्टम करने के बाद इनका विसरा जांच के लिए सागर एवं जबलपुर की लैब में भेजा गया था लेकिन अभी तक रिपोर्ट नहीं आ सकी है।

वन विभाग का कहना है कि विसरा रिपोर्ट आने में कम से कम एक माह का समय लगेगा। उधर पशु चिकित्सा विभाग के डॉक्टरों का कहना है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट से मौत का कारण स्पष्ट नहीं हो सका है, इसलिए वन विभाग को विसरा जांच के लिए कहा गया था।

पुलिस रही असहाय

पुलिस कर्मी ट्रैफिक जाम शुरू होने के कुछ ही देर बाद निरावली पहुंच गए थे लेकिन वे ग्रामीणों को समझाने में विफल रहे। जाम में फंसने वाले वाहन चालक पुलिस कर्मियों से जाम खुलवाने के लिए बार-बार आग्रह कर रहे थे लेकिन पुलिस लाचार थी।


कलेक्टर ने मांगा प्रस्ताव

रायरू डिस्टलरी के पानी से पैदा हो रही समस्याओं को दूर करने के लिए कलेक्टर आकाश त्रिपाठी ने कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। उन्होंने वन अधिकारियों से कहा कि यदि डिस्टलरी क्षेत्र वन्य प्राणी क्षेत्र में है तो फैक्टरी प्रबंधन के खिलाफ वन्य प्राणी अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाए। यदि ऐसा नहीं है तो लोक सुविधाओं के हनन पर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 133 के तहत प्रस्ताव उन्हें भेजा जाए। वन विभाग ने दोनों ही मामलों में अभी कार्रवाई नहीं की है।

आज होगी संयुक्त बैठक
चक्काजाम करने वाले ग्रामीणों के बीच पहुंचीं सिटी मजिस्ट्रेट उमा करारे ने बताया कि सोमवार को सुबह 11 बजे संयुक्त बैठक होगी। अपर कलेक्टर आरके जैन की अध्यक्षता में होने वाली इस बैठक में पांच ग्रामीण, रायरू डिस्टलरी प्रबंधन का प्रतिनिधि, आबकारी तथा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी शामिल रहेंगे।

पहले भी हो चुकी है जांच

डिस्टलरी से निकलने वाले पानी के कारण खेत की मिट्टी खराब होने की शिकायत डेढ़ साल पहले भी किसानों ने की थी। तब भी कलेक्टर ने धारा 133 के तहत प्रकरण दर्ज कर जांच कराई गई थी। इसके बाद कमेटी को पानी की जांच की जिम्मेदारी सौंपी गई थी पर जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में पानी को प्रदूषित नहीं माना था।

जमीन के अंदर जा रहा है गंदा पानी

लगभग तीन हजार की आबादी वाले निरावली गांव के ग्रामीणों का कहना है कि डिस्टलरी से निकलने वाला दूषित पानी खेतों में जा रहा है। दूषित पानी नलकूप एवं कुओं में स्रोत के माध्यम से पहुंच रहा है, इससे लोगों को पेट की बीमारियां हो रही है। गांव में लगे नलकूप एवं कुओं से निकलने वाले पानी की जांच कराई जाए। ग्रामीणों का कहना है कि 10 दिन में लगभग एक सैकड़ा मोरों की मौत हो चुकी है।

ट्रैफिक जाम से हालत खस्ता

ग्वालियर से सुबह 11:30 बजे बानमोर में एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए परिवार के साथ निकला था लेकिन घंटों जाम में फंसने के कारण परिवार के सदस्यों की हालत खराब हो गई है। इसलिए घर लौटने पर विचार कर रहा हूं।

रामवीर सिंह

मैं बेटी को ग्वालियर पेपर दिलवाने के लिए कार से आया था, मुझे नहीं मालूम था कि कार से वापस जयपुर जाने पर मुझे इस तरह के जाम में फंसना पड़ेगा। इस गर्मी में कहीं भी पानी पीने को नहीं मिला।

मदन मोहन शर्मा

http://www.bhaskar.com/article/MP-GWA-people-jammed-road-in-gwalior-in-protest-against-death-of-peacocks-2069833.html

Friday, April 29, 2011

Van Vihar Bhopal to get two male gharials

April 29, 2011   4:35:32 PM

Team Viva

The Van Vihar National Park Bhopal administration is going to bring two male gharials in the park. Till now tourists of Van vihar were seeing only female gharials but now they can have a look at a male gharial as well. Besides, the park is expected to receive a tiger from Assam shortly.

The two male gharials are going to be brought from the Jaipur zoo. The park management has completed full planning to bring these aquatic animals. After 10-12 years, the male gharials are going to be brought to Van Vihar. Total 12 gharials were in Van Vihar 12 years back, of which only six are present now.

A park team will depart next week to the Jaipur zoo to bring the male gharials. The team has not left uptil now, due to shortage of employees in the park. The Central Zoo Authority (CZA), Delhi has given permission to bring male gharials to the park. After the permission, the park management has started the preparations to bring the male gharials in the park. The management has made four metre-long crate of iron and ply, in which the gharials will be brought to Bhopal.

The purpose of bringing the gharials is for increasing the number of gharial population in the park. The tourists of Van Vihar are eager to see the male gharials in Van Vihar because till now they have being seing only female gharials. The tourists who are fond of watching new animals are now eagerly awaiting the arrival of the male gharials.

The Van Vihar team is preparing a place for the new visitors to keep them on the safeguarded place from where the tourists can have a perfect and safety look on them.

Recently, the park administration had brought two female gaurs (Indian bison) from Kanha, but unfortunately one of the gaurs had got injured in the process and laterdied during treatment.

Moreover, preparations are also on to transfer a Royal Bengal tiger from Assam to Van Vihar by next week. The request to transfer the striped feline to Van Vihar Zoo came to the Centre towards the end of last year through the Delhi-based Central Zoo Authority. However, the transfer was delayed because of some problems. The Central Zoo Authority extended permission for the transfer by six months and the CWRC is now planning to transfer the big cat by the end of next week.

http://www.dailypioneer.com/333768/Van-Vihar-to-get-two-male-gharials.html

खतरे में नदियां

विकसित देशों में नदियां सर्वाधिक खतरे में हैं। एक वैश्विक अध्ययन से पता चला है कि नदियों के प्राकृतिक प्रवाह में आ रहे लगातार अवरोधों के कारण नदियों और उसके सहारे चल रहा जीवन और जैव विविधता सभी कुछ संकट में पड़ गए हैं। आवश्यकता इस बात की है कि हम पुनः नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को सुनिश्चित करें। सिर्फ मनुष्यों के लिए पानी उपलब्धता सुनिश्चित कराने हेतु नदियों के प्रवाह पर लगती रोक अंततः विनाशकारी सिद्ध होगी।
        वि श्व की नदियां कुप्रबंधन और प्रदूषण से संकट में हैं। इस वजह से प्रत्येक 10 में से 8 व्यक्ति एवं 10 से 20 हजार ऐसे प्राणी संकट में हैं, जिनका कि ये घर है। यह तथ्य उस प्रथम वैश्विक पहल के माध्यम से उभरा है, जिसने व्यक्तियों के लिए जल सुरक्षा और नदियों की जैव विविधता का मूल्यांकन किया है। ग्यारह वैज्ञानिकों ने प्रदूषण, सघन खेती, केचमेंट क्षेत्र में अवरोध और बांध निर्माण जैसे 23 प्रभावों की पहचान कर उन्हें एक साथ रखकर एक नक्शा तैयार किया है, जो कि इन सबका नदियों के स्वास्थ्य और उससे जुड़े रहवास पर पड़ रहे प्रभाव दर्शाता है।
       नक्शे में बताया गया है कि समुद्र में सामूहिक रूप से आधे से अधिक अपवाह (पानी पहुंचाने वाली) सबसे बड़ी 47 नदी प्रणालियों में से 30 खतरे में हैं। यूरोप और उत्तरी अमेरिका के अमीर देशों ने बांधों, एक्वाडक्ट, गहरे नलकूप एवं जलशोधन संयंत्रों के माध्यम से पीने के पानी की कमी से संबंधित जोखिमों को 95 प्रतिशत तक कम करके अपने नागरिकों के लिए सुरक्षित एवं पर्याप्त पानी की आपूर्ति सुरक्षित कर ली है।
        परंतु 30 सितम्बर के ‘नेचर’ के अंक में बताया गया है कि यह सब कुछ नदियों की पारिस्थितिकी की कीमत पर किया गया है। नक्शे में बताया गया है कि दशकों के प्रदूषण नियंत्रण प्रयत्नों एवं नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र की पुर्नस्थापना के बावजूद अमेरिका और पश्चिमी यूरोप की अधिकांश नदी प्रणालियां सर्वाधिक खतरे में हैं।
         इस संबंध में जानकारी देते हुए समूह के एक वैज्ञानिक पीटर मेकइन्टायर कहते हैं कि उत्तरी अमेरिका के प्रत्येक नदी बेसिन में हजारों की संख्या में बांध बने हुए हैं। इन बांधों से श्रृंखलाबद्ध तरीके से सालमोन जैसी प्रवासी मछली विलुप्त हो गई और अन्य दर्जनों जलीय प्रजातियां खतरे में हैं। मेकइन्टायर कहते हैं ‘हमने मानवों के लिए जल की उपलब्धता बनाए रखने हेतु अनेक तकनीकी नवाचार कर लिए हैं लेकिन जैव विविधता सुरक्षित बनाए रखने की दिशा में बहुत ही कम नवाचार हुआ है।
         रिपोर्ट ने इसी तरह की चेतावनी विकासशील देशों में भी नदियों के ह्रास के संदर्भ में भी दी है, जिनके पास इतने संसाधन नहीं हैं कि वे तकनीक में निवेश कर अपनी नदियों को साफ कर सकें और जहां जनसंख्या भी तेजी से बढ़ रही है। ब्राजील, रूस, भारत, चीन और ओईसीडी (आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन) देशों को सहस्त्राब्दी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु अपनी जल अधिसंरचना को सुधारने हेतु प्रति वर्ष 800 अरब अमेरिकी डाॅलर की आवश्यकता है। नक्शे में बताया गया है कि निवेश की कमी की वजह से विकासशील देशों के मनुष्यों और जैव विविधता को और अधिक खतरा है।
        अध्ययन में यह आग्रह किया गया है कि विकासशील देश अमीर देशों का अनुसरण न करें। इस संबंध में भरत झुनझुनवाला जो कि भारतीय अर्थशास्त्री हैं और जिन्होंने हाल ही में अमेरिका में बांधों को हटाए जाने पर एक पुस्तक भी लिखी है, का कहना है कि ‘विकासशील देश अभी इस स्थिति में हैं कि वे टिकाऊ तरीके से जलसुरक्षा प्राप्त कर सकते हैं।’ वैज्ञानिकों का सुझाव है जलशोधन के खर्चों को कम करने के लिए जलस्त्रोतों की सुरक्षा जैसी रणनीतियां अपनानी चाहिए। उदाहरण के लिए न्यूयार्क शहर ने जलशोधन संयंत्र का स्तर और ऊँचा करने की अत्यधिक लागत से बचने के लिए केटसकिल पर्वत का एक हिस्सा इस हेतु लिया, जिससे कि प्राकृतिक रूप से फिल्टर किया हुआ पानी उपलब्ध करवाया जा सके। वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया है कि नीति निर्माताओं को चाहिए कि बजाए महंगे कृत्रिम अवरोध बनाकर कृषि भूमि को डुबोने के, वे पानी के स्त्रोत और वेटलेण्ड को सुरक्षित रखें क्योंकि वे न केवल कम लागत पर पानी उपलब्ध करवाएगें बल्कि बाढ़ रोकने में भी मदद करेंगे।

 (साभारः सप्रेस- सीएसई, डाउन टू अर्थ फीचर्स)

Gharial nests getting damaged in Etawah

 KANPUR: Wildlife activists have spotted a couple of damaged nesting sites of critically endangered (Schedule 1) gharial in the sandbeds of river Chambal at the National Chambal Sanctuary of Etawah district during the ongoing breeding season.

"At least seven to eight nests of gharial have been spotted near Kasauwa village while nearly three to five nests were sighted near Kheda Ajab Singh dotting the banks of the Chambal. One nest each were found damaged at both those sites in a survey. It seemed the nests were destroyed by predators, mainly jackal," informed a senior forest official. "Each sites have about 25-60 eggs. The eggs hatch through natural process in the last week of May or first week of June," he added.

Meanwhile, the forest department sources said forest personnel were keeping a strict watch over the eggs of gharial. "If it is true, then it will be a serious setback for this highly endangered specie. We will try to crosscheck the exact number of damaged nests first and will reach any conclusion only then," said principal chief conservator of forest (wildlife) BK Patnaik while talking to TOI.

Another forest department official said gharial needed large areas of sandbeds if they were to breed and find enough food. "It is not possible for the forest officials to protect all the nests as it is a vast stretch of nearly 180-km and gharial make nest in sandbeds along the banks of the river," he pointed out. As per experts, there might be 50-60 nests in the Chambal region in UP alone. Last year also, the same number of gharial nests were spotted.

In fact, almost 435-km stretch of Chambal, from Rajasthan-Madhya Pradesh to Uttar Pradesh, is known as aquatic animal's haven. "Earlier, in the year 2008, the forest department had made some sincere effort to protect gharial's nesting sites by covering them with nets. But, it is no more being done now. The situation has worsened up to such an extent that beside poachers, all these spots have now become recreational sites for picnic-goers who throng these spots in huge numbers on weekends, thus damaging the nesting sites of gharial," said Dr Rajiv Chauhan, secretary, Society for Conservation of Nature.

After mating on the surface of the water, female gharial lays eggs on steep sandbeds near rivers. The female reptiles guard the eggs from predators like jackals, hyena, stork, vultures and other animals. "Anything that affects gharial breeding here is likely to have a negative effect on the critically endangered specie," he said.

In a latest survey by the Conservationist, the Indian gharial (Gavialis gangeticus) is in the list of critically endangered species. Besides Chambal, gharials are found only in the Ganga, Brahmaputra and Mahanadi river systems in India and Nepal. In 2007, from November till March 2008, more than 112 gharial had died in the Chambal from unknown cause with gout-like symptoms. Further investigations by the IVRI suggested the possibility of poisoning by metal pollutants. Considered critically endangered by the International Union for Conservation of Nature, just 200-300 gharial were believed to be left in the Chambal and Katarnia Ghat beside 2,000-3,000 across India.

"An adult male can measure up to 20-ft in length while female gharial can grow up to 13-ft," informed another wildlife conservator. "The long snouted mammal requires sandy banks to lay eggs," he explained. A huge sized gharial was last rescued from Kandhesi minor in Etawah district in 2009. In 2008, more than 100 gharial were released in the Ganga in UP.

Reproduction:

The mating season is during November through December and well into January. The nesting and laying of eggs take place in the dry season of March, April and May. This is because during the dry season the rivers shrink a bit and the sandy river banks are available for nesting. Between 30 and 50 eggs are deposited into a hole that the female digs up before it is covered over carefully and after about 90 days, the juveniles emerge. In the nest she will lay up to 50 eggs with each egg being approximately 150 g in weight.

http://timesofindia.indiatimes.com/city/kanpur/Gharial-nests-getting-damaged-in-Etawah/articleshow/8101527.cms

Gharial found dead on MP-Rajasthan border

April 29, 2011   4:22:17 PM

PNS | Gwalior

A gharial measuring around 7 to 8 feet was found dead in the Chambal river, on the border of Madhya Pradesh and Rajasthan. The exact reasons behind the death are not known till now.

The gharial had reportedly died two-three days back in the Chambal river. The area from where the mortality has been reported is situated at some distance from the Chambal bridge. The reason of death of the gharial is not known but locals claim that illegal mining has been going on for years on the banks of Chambal river, which is disturbing the ecology in the area.

Forest Range Officer from Sheopur SS Khare on the issue said that the gharial had died around two-three days back in the Chambal river on the border of MP and Rajasthan. The Rajasthan forest officials have been informed about its death, said Khare.

The Ranger however declined having the knowledge of the exact reasons which brought about the mortality. He said that 8 or 10 days back, another gharial had died after getting entangled in a fishing net.

Meanwhile, due to a large number of gharials in the river, which flows through MP, UP and Rajasthan borders, the area is known as the Chambal Sanctuary. The Government is spending lakhs of rupees on the conservation of gharials.

Recently, the Central Government had decided to establish a Gharial Protection Authority for taking care of the endangered gharials in Chambal river, which stretches through the boundaries of Madhya Pradesh, Uttar Pradesh and Rajasthan. The Centre has also announced for establishing a sanctuary for gharials, which would be spread over an area of 1,600 sq km.

The proposed sanctuary would be aimed at protecting the species from extinction. Minister of State for Environment and Forests Jairam Ramesh had made the announcement in this regard during a visit to Chennai recently.

The Centre has proposed the conservation of gharials through a three-State authority. The Ministry of Environment and Forest (MoEF) has approved the proposal and has allotted ` 8 crore for this project. According to officials figures of the Ministry of Environment and Forests, at present, there were only 200 breeding adult gharials and their total population in the wild would be a around 1,400. The proposed sanctuary is expected to help stabilise the population of this endangered species.
Source http://www.dailypioneer.com/317244/Gharial-found-dead-on-MP-Rajasthan-border.html

Saturday, April 23, 2011

नदी एक गीत है

नदी एक गीत हैः
जो पहाड़ के कण्ठ से निकल
समुद्र की जलपोथी में छप जाती है
जिस के मोहक अनुरणन से हरा-भरा रहता है
घाटी-मैदान

अपने घुटने मोड़ जिसे पीती है बकरी
हबो-हबो कहने पर पी लेते हैं जिसे गाय-गोरू
खेत-खलिहान की मेहनत की प्यास में
पीते हैं जिसे मजूर-किसान
नदियों में पानी है तो सदानीरा है जुबान

रेत में हाँफती नदियाँ
भाषा के हलक में खरखराती हैं
कीचड़-कालिख में तड़पती नदियों से
बोली-बानी का फेफड़ा हो रहा है संक्रमित
आँख का पानी भी उतार पर है
और उस पानी की कमी से
आदमी का करेजा हो रहा है काठ!

नदियों की बीमारी से
गाँव-जवार, नगर का चेहरा उतरा हुआ लग रहा है
जैसे कि यमुना की बीमारी से
दिल्ली का चेहरा है बेनूर
वेतवा को मण्डीदीप दबोच रहा है
क्षिप्रा की दशा देख विलख रहा है मेघदूत
महानद की उपाधि बचाने में सोन की
फूल रही है साँस
गंगा के प्रदूषण पर रोना रोने के सिवा
क्या कर रही है सरकार!

नदी एक गीत हैः
जिस के घाट पर ही हमने किया ग़मे-रोजगार
लोककण्ठ गाते हैं कि नदियों से ही जीवित हैं
हमारे सजल-संबंध
पार्वती गाँव की मेरी माँ
हर नदी की अपने मायके की सम्पदा कहती है

नदी एक गीत हैः
खानाबदोश कंकर भी
जिस से अपनी धुन में बहता है!
Source http://hindi.indiawaterportal.org/node/30066

‘जल वर्ष’ के रूप में मनाएंगे आने वाले पांच साल

भोपाल/खरगोन. मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने घोषणा की है कि प्रदेश में अगले पांच साल ‘जल वर्ष’ के रूप में मनाए जाएंगे और इस पर 25 हजार करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि कृषि-गैरकृषि बिजली फीडर अलग-अलग करने का काम 2013 तक पूरा कर लिया जाएगा।

सीएम ने कहा कि आवंटित नर्मदा जल का उपयोग प्रदेश 2020 तक करने लगेगा। उन्होंने कहा कि जिन जिलों में विद्युत हानि 20 फीसदी से कम होगी, उन्हें 24 घंटे बिजली दी जाएगी। श्री सिंह ने रविवार को खरगोन जिला मुख्यालय पर साढ़े पांच अरब की उद्वहन सिंचाई परियोजना का शिलान्यास किया। उन्होंने कहा कि खंडवा जिले के सिंगाजी में निर्माणाधीन विद्युत संयंत्र का कार्य दिसंबर 2012 तक पूरा हो जाएगा और इससे 1200 मेगावाट बिजली मिल सकेगी।

इस योजना को मार्च 2014 तक पूरा करने का लक्ष्य है। इसके पूरा होने पर 125 ग्रामों में 33 हजार हेक्टेयर से अधिक भूमि में सिंचाई सुविधा उपलब्ध होगी। शिलान्यास के बाद जन समारोह को संबोधित करते हुए सीएम ने कहा कि मप्र को नर्मदा जल पंचाट के अनुसार 18.25 मिलियन एकड़ फीट जल का उपयोग 2024 तक करना है, लेकिन हम यह कार्य 2020 तक ही पूरा कर लेंगे।
Source   http://www.bhaskar.com/article/MP-OTH-cm-shivraj-singh-chouhan-announces-that-next-five-years-would-be-celebrated-as-w-2028943.html

Monday, April 18, 2011

जलाभिषेक और स्कूल चलें हम सहित सभी अभियानों को मिलेगा नया स्वरूप

प्रदेश में कृषि उत्पादन बढ़ाने, जलाभिषेक अभियान के बेहतर संचालन और स्कूल चलें अभियान से जन-जन को जोड़ने के लिये भोपाल में 9 अप्रैल को राज्य सरकार द्वारा गठित मंत्रिपरिषद् समिति की बैठक मंत्रालय में संपन्न हुई। इन अभियानों के अधिक प्रभावी क्रियान्वयन के उद्देश्य से आवश्यक रणनीति तैयार करने के लिये यह समिति गठित की गई है। मंत्रालय में संपन्न बैठक में समिति के सदस्य जल संसाधन एवं पर्यावरण मंत्री श्री जयंत मलैया, सामाजिक न्याय, पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री श्री गोपाल भार्गव, पशुपालन मछली पालन, पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री श्री अजय विश्नोई और किसान कल्याण तथा कृषि विकास मंत्री डॉ. रामकृष्ण कुसमरिया बैठक में उपस्थित थे।
उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने गत दिनों संपन्न मंत्रिपरिषद् की बैठक में प्रदेश में कृषि उत्पादन बढ़ाने, जलाभिषेक और 'स्कूल चलें हम' अभियानों को इस वर्ष नई ऊर्जा से संचालित करने के लिये सुझाव आमंत्रित करने और पूर्व वर्षों के अभियानों की समीक्षा के लिये मंत्रिपरिषद् समिति गठित करने के निर्देश दिए थे। इन अभियानों का स्वरूप निखारने से इनका लाभ आने वाले वर्षों में अधिक कारगर ढंग से प्राप्त हो सकेगा।
तय होगी कृषि के लिये नई रणनीति
मंत्रिपरिषद् समिति ने प्रदेश में फसलों की उत्पादकता को बढ़ाने के लिये वृहत्त समुदाय आधारित कार्यक्रम का प्रस्तुतिकरण देखा और किसानों के लिये सर्वोत्तम तकनीक के प्रयोग, कीट व्याधि नियंत्रण, रासयनिक खाद के संतुलित प्रयोग, प्रदाय बीजों के शत-प्रतिशत उपचार, कृषि यंत्रों का बेहतर उपयोग और मंडियों में कृषकों को सही मूल्य से संबंधित बिन्दुओं पर विस्तृत विचार-विमर्श किया। इस मौके पर बताया गया कि प्रदेश में कृषि को लाभ का व्यवसाय बनाने, फसलों की उत्पादकता और क्षेत्राच्छादन बढ़ाने, कृषकों को बोयी जाने वाली फसलों की सर्वोत्तम विधियों को अपनाने और किसानों को उपलब्ध संसाधनों के सार्थक उपयोग की दृष्टि से अभियान का प्रारूप और कार्य योजना तैयार की गई है। कृषि विभाग द्वारा तैयार अभियान के प्रारूप में जानकारी दी गई कि कृषकों को लाभकारी कृषि के लिये जागरूक तथा प्रोत्साहित करने के लिये प्रत्येक ग्राम पंचायत स्तर तक प्रचार अभियान संचालित किया जायेगा। इसके लिये मुद्रित एवं इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों का भी व्यापक उपयोग होगा। इसके अलावा प्रगतिशील कृषकों को कृषि विकास मित्र के रूप में अन्य कृषकों को जागरूक बनाने संबंधी दायित्व दिया जायेगा। अभियान में राज्य सरकार की भूमिका सिर्फ संयोजक की होगी। कृषक, कृषि से जुड़े गैर संगठन और निर्वाचित जनप्रतिनिधि, उत्पादकता वृद्धि के इस अभियान में सक्रिय भूमिका निभाएंगे। आज के प्रस्तुतिकरण में समिति ने किसानों तक संदेश पहुंचाने के लिये तैयार किये जाने वाले पोस्टर्स और अन्य प्रचार सामग्री की भाषा सरल लिखे जाने और कम शब्दों में प्रभावी संदेश देने की जरूरत बताई। समिति सदस्यों ने कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिये संचालित होने वाले इस अभियान तथा खरीफ अभियान से जुड़े सुझाव दिए। इस दौरान फसलों की कटौती के पश्चात खेत को समतल कर पुन: बीजारोपण के लिये विकसित नये यंत्रों से किसानों को लाभान्वित कराने के निर्देश भी दिए गए। बैठक के दौरान यह भी जानकारी दी गई कि आदिवासी बहुल डिंडौरी जिले में कोदो कुटकी के उत्पादन के लिये कृषकों को प्रोत्साहित किया गया है। सहकारिता के माध्यम से किसान अब अपनी फसल का लगभग दोगुना मूल्य प्राप्त कर रहे हैं। कोदो कुटकी उत्पादक आदिवासी किसानों को प्रोसेसिंग प्लांट एवं विपणन व्यवस्था उपलब्ध कराने पर ध्यान दिया जा रहा है। समिति सदस्यों ने कृषि उपकरण निर्माण में निजी क्षेत्र में खुरई और बीना में हो रहे कार्य की जानकारी दी। बैठक में बताया गया कि किसान काल सेंटर में प्राप्त किसानों के सुझावों और शिकायतों को संकलित कर आवश्यक समाधान की कार्रवाई प्राथमिकता पूर्वक की जाएगी।
पीढ़ी जल संवाद का होगा आयोजन
भोपाल में 9 अप्रैल को संपन्न बैठक में दो माह अवधि के लिये जलाभिषेक अभियान के सुचारू संचालन के लिये पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के प्रस्तुतिकरण को भी मंत्रिपरिषद् समिति ने देखा। अपर मुख्य सचिव पंचायत एवं ग्रामीण विकास श्री आर. परशुराम ने बताया कि जलाभिषेक अभियान 2011-12 में नदियों को पुनर्जीवित करने, जल स्वावलंबी ग्रामों के विकास, भागीरथ कृषकों को प्रोत्साहन, पुरानी जल संग्रह संरचनाओं की मरम्मत और उनके नवीनीकरण के संबंध में रणनीति तैयार की गई है। पिछले वर्षों के जलाभिषेक अभियानों में जिन कार्यों से बेहतर परिणाम मिले हैं, उन्हें दोहराते हुए और अधिक संख्या में आमजन को अभियान से जोड़ा जायेगा। इस वर्ष प्रस्तावित कार्ययोजना में जिला जल संसद के आयोजन, जनपद जल सम्मेलनों के आयोजन, जल यात्रा और नदी संवाद के आयोजनों को शामिल किया गया है। इसके साथ ही प्रत्येक ग्राम में पीढ़ी जल संवाद का आयोजन भी होगा, जिसमें ग्रामसभाओं में नौजवानों और बुर्जुगों के मध्य खुला संवाद आयोजित किया जायेगा। पीढ़ी जल संवाद के आयोजन का उद्देश्य वर्तमान पीढ़ी को पूर्व दशकों में जल संरक्षण की दिशा में अपनाए गए श्रेष्ठ सफल प्रयोगों से अवगत कराना है। इसके तहत बातचीत के माध्यम से बुर्जुगों का पारम्परिक ज्ञान, युवाओं को स्थानान्तरित किया जायेगा। जलाभिषेक अभियान के प्रति सामाजिक चेतना बढ़ाने और समुदाय को सक्रिय भागीदारी के लिये प्रोत्साहित करने के लिये अच्छा कार्य करने वाली ग्राम पंचायतों, व्यक्तियों और भागीरथ कृषकों का सम्मान भी प्रस्तावित है। इस पर बताया गया कि जलाभिषेक के अभियान में भागीरथ कृषकों द्वारा गत वर्ष 5678 कार्य संपादित हुए हैं। इन पर 68 करोड़ रुपये की राशि खर्च हुई। इसी तरह अन्य जल संरक्षण और जल सवंर्द्धन कार्यों को अंजाम देने के लिये 880 करोड़ रुपये की राशि खर्च की गई। इसमें 32 करोड़ रुपये का जनसहयोग भी प्राप्त हुआ। बैठक में बताया गया कि बुंदेलखंड के किसान मेढ़ बंधान कार्यों में विशेष रुचि ले रहे हैं। समिति सदस्यों ने सुझाव दिया कि जल संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक बनाने के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की जाए और इसके लिये श्रेष्ठ वक्ताओं का चयन किया जाये। बैठक में मनरेगा के माध्यम से कृषकों को तालाबों के गहरीकरण के पश्चात निकाली गई मिट्टी का परिवहन भी योजना के तहत किये जाने की जानकारी भी दी गई। दीवार लेखन जैसे प्रचार माध्यमों का कृषकों को शिक्षित और सूचित करने में उपयोग किये जाने का सुझाव भी दिया। इसके अलावा उन्नत कृषकों को कृषि विभाग द्वारा गोद लेकर उनकी कृषि पद्धति का प्रत्यक्ष दर्शन अन्य किसानों को करवाने की भी समिति ने आवश्यकता बताई।
विद्याथिर्यों को देंगे अधिक प्रोत्साहन
स्कूल चलें अभियान के तहत विभिन्न गतिविधियों की दिनांकवार जानकारी मंत्रिपरिषद् समिति को दी गई। इसके तहत तीन चरणों में कार्रवाई की जाना है। सर्वप्रथम 20 अप्रैल को राज्य स्तर से जिलों को विस्तृत दिशा निर्देश भेजें जायेंगे। अभियान से संबंधित जिला स्तरीय बैठक कलेक्टरों द्वारा 5 मई को आयोजित की जायेगी। मई के द्वितीय सप्ताह में वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से स्कूल चलें हम अभियान के तहत की जा रही कार्रवाई की समीक्षा की जायेगी। प्रत्येक बसाहट तक संपर्क का सर्वेक्षण किया जायेगा। ग्रामवार शिक्षा रजिस्टर बनाकर आवश्यक रिकार्ड रखा जायेगा। घर-घर जाकर शिक्षा का महत्व बताते हुए परिवारों को बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित किया जायेगा। अभियान के तहत प्रत्येक विकास खंड में ऐसे 20-20 ग्रामों की सूची तैयार कर विशेष दल गठित किये जायेंगे, जहां शाला त्यागी बच्चों की संख्या अधिक रही है। ऐसे कमजोर क्षेत्र में अभियान के तहत बच्चों के विद्यालयों में प्रवेश पर अधिक ध्यान दिया जायेगा।
मंत्रिपरिषद् समिति के प्रमुख सुझाव
  • खरीफ अभियान में फसलोन्मुखी, किसानोन्मुखी और ग्रामोन्मुखी नीति अपनाई जाए।
  • जल स्वावलंबी ग्राम के साथ ही 40 हैक्टेयर से कम क्षमता के तालाबों और चेक डेम के निर्माण।
  • नदियों के पुनर्जीवन के लिए प्रयास बढ़ाएं।
  • नरेगा के तहत तालाबों के गहरीकरण के बाद मिट्टी का परिवहन कर उसका अन्यत्र एकत्रीकरण।
  • स्कूल चलें अभियान के समर केम्प की बेहतर व्यवस्था।
  • विद्यालयों के बांउड्रीवाल, टायलेट, शेड की व्यवस्था, सायकिल स्टेंड बनाए जाएं।
  • नि:शक्तजन पुनर्वास केंद्रों के लिए आउटसोर्सिंग।
  • किसानों के लिए पर्याप्त, अच्छे, प्रमाणित बीज की व्यवस्था।
  • बीजोपचार पर विशेष ध्यान।
  • गहरी जुताई के साथ कृषि भूमि की तैयारी।
  • जल संसाधन विभाग के तालाबों का हो प्राथमिकता से जीर्णोद्धार।
  • ग्रीष्मावकाश में भी मध्याह्न भोजन के माकूल इंतजाम हों।
  • नि:शक्तजन को उनकी क्षमता के मुताबिक कौशल उन्नयन और रोजगार के अवसर।
प्रदेश में शैक्षणिक सत्र 2011-12 में कक्षा एक के अलावा माध्यमिक शिक्षा के तहत कक्षा आठवीं के बच्चों के कक्षा नौवीं में शत-प्रतिशत नामांकन और कक्षा नौवीं के बच्चों की दक्षता में सुधार के उद्देश्य से स्कूल चलें हम अभियान के संचालन की कार्रवाई 15 अप्रैल से प्रारम्भ की जा रही है। इसके तहत सबसे पहले कक्षा 8 के बच्चों की सूची तैयार करने का कार्य किया जायेगा। अभियान के तहत 23 अप्रैल तक शिक्षकों को माध्यमिक शालाओं का आवंटन कर बच्चों की सूची उपलब्ध कराई जायेगी। शिक्षकों द्वारा शालाओं और बच्चों के पालकों से संपर्क का कार्य 10 से 15 जून के मध्य किया जायेगा। 16 जून से इन बच्चों के प्रवेश का कार्य प्रारम्भ होगा। प्रवेशित बच्चों की दक्षताओं का आकलन भी एक टेस्ट के माध्यम से किया जायेगा। अभियान से संबंधित प्रस्तुतिकरण में जानकारी दी गई कि राज्य में ब्रिज कैंप और ब्रिज कोर्स की व्यवस्था से विद्याथिर्यों को लाभान्वित करने में सफलता मिली है।
भोपाल में 9 अप्रैल को मंत्रिपरिषद् समिति के सदस्यों ने स्कूल चलें हम अभियान को जल आंदोलन का रूप देने के लिये शासकीय और निजी स्तर पर अधिक से अधिक प्रयासों की जरूरत बताई। प्रस्तुतिकरण के दौरान बताया गया कि इस वर्ष अभियान के अंतर्गत समर केम्प का आयोजन भी किया जा रहा है। पालक शिक्षक संघों की भूमिका के साथ ही स्कूल प्रबंधन समितियों के गठन और उन्हें प्रभावी बनाने के संबंध में भी बैठक में चर्चा हुई। इस वर्ष अभियान में अनुसूचित जाति, जनजाति के विद्याथिर्यों को निजी विद्यालयों में प्रवेश के लिये 25 प्रतिशत स्थान आरक्षित करने की पहल की गई है। अभियान के तहत 16 जून को प्रवेश उत्सव की कार्रवाई और सार्वजनिक रूप से विद्याथिर्यों को गणवेश के लिये चेक प्रदान किया जायेगा। स्कूल चलें हम अभियान को अभिनव स्वरूप देते हुए 16 जून से दो सप्ताह अवधि तक प्रतिदिन प्रभात फेरी का आयोजन भी होगा। एक जुलाई को ग्राम सभाओं में प्रवेश लेने वाले बच्चों के नाम पढ़कर सुनाए जाएंगे। इस अवसर पर जानकारी दी गई कि शिक्षकों की विद्यालय में उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिये सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग भी प्रस्तावित है। मंत्रिपरिषद् समिति के सदस्यों ने स्कूल चलें अभियान के अंतर्गत कमजोर क्षेत्र में अधिक प्रयास करने के निर्देश दिए ताकि कोई भी बच्चा शाला में प्रवेश से वंचित न हो।
स्पर्श और उत्थान अभियान होगा नये रूप में
भोपाल में 9 अप्रैल को मंत्रालय में मंत्रिपरिषद् समिति द्वारा प्रदेश में नि:शक्तजन के सर्वेक्षण के लिये स्पर्श अभियान और उनकी सहायता के लिये उत्थान अभियान-2011 के संचालन के संबंध में भी विचार-विमर्श किया गया। नि:शक्त कल्याण के लिये प्रदेश में 1 से 15 जून तक विकास खंड स्तरीय मेलों और 1 जुलाई से जिला स्तरीय मेलों में नि:शक्तजन को सेवाओं के प्रदाय के कार्य प्रस्तावित हैं। इसके साथ चिन्हांकित नि:शक्तजन के कौशल उन्नयन के लिये प्रशिक्षण और रोजगार देने के लिये अभियान भी चलाया जायेगा। बैठक में स्पर्श और उत्थान अभियान के विस्तृत कार्य योजना और तैयार कैलेंडर के अनुसार आयोजित की जाने वाली गतिविधियों की जानकारी दी गई। समिति ने नि:शक्तजन के पुनर्वास केन्द्रों को पुनर्जीवित करने का सुझाव दिया। इसके लिये भारत सरकार से आवश्यक सहयोग प्राप्त करने पर भी मंत्रिपरिषद् समिति ने सहमति व्यक्त की। नि:शक्तजन से संबंधित प्रस्तुतिकरण में बताया गया कि नि:शक्तजन को स्कूल चलें हम अभियान से जोड़ने के लिये 16 जून से 15 जुलाई तक निरंतर प्रयास किये जायेंगे।
मंत्रिपरिषद् समिति की बैठक में प्रमुख सचिव, सामान्य प्रशासन विभाग श्रीमती विजया श्रीवास्तव, प्रमुख सचिव जल संसाधन श्री राधेश्याम जुलानिया, प्रमुख सचिव स्कूल शिक्षा श्री रजनीश वैश्य, प्रमुख सचिव कृषि एवं सहकारिता श्री मदनमोहन उपाध्याय, आयुक्त राज्य शिक्षा केन्द्र श्री मनोज झालानी, सचिव एवं आयुक्त जनसंपर्क श्री राकेश श्रीवास्तव, ग्रामीण विकास सचिव श्री अजय तिर्की, श्री उमांकात उमराव, आयुक्त सामाजिक न्याय श्री हीरालाल त्रिवेदी एवं सचिव सामान्य प्रशासन श्री अरुण तिवारी भी उपस्थित थे। 
गोवा फेस्ट-2011
मध्यप्रदेश
पर्यटन को मिले राष्ट्रीय पुरस्कार
'गोवा फेस्ट-2011' में मध्यप्रदेश राज्य पर्यटन विकास निगम को टी.व्ही. विज्ञापन के लिये राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ है। गोवा में विज्ञापन क्लब, मुम्बई द्वारा आयोजित समारोह में पर्यटन विकास निगम के नये टी.व्ही. केम्पेन शैडो ग्राफी को फिल्म क्राफ्ट कैटेगिरी में दो स्वर्ण एवं एक रजत पुरस्कार मिला है जो मध्यप्रदेश पर्यटन के लिये गौरव का विषय है। यह टी.व्ही. केम्पेन 'एम.पी. अजब है गजब है' फुट केण्डिल्स मुम्बई की कम्पनी द्वारा निमिर्त किया गया है। 'गोवा फेस्ट-2011' में दिया जाने वाला यह राष्ट्रीय स्तर का अवार्ड है, जिसे प्रतिवर्ष एडवरटायजिंग क्लब, मुम्बई द्वारा आयोजित किया जाता है। इसमें राष्ट्रीय स्तर के प्रतिभागियों को विज्ञापन की भिन्न-भिन्न श्रेणियों में पुरस्कार दिये जाते हैं। 
अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति
आवासहीनों
को भू-खण्ड उपलब्ध कराने योजना का क्रियान्वयन
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के आवासहीन व्यक्तियों को आवासीय भवन बनाने के लिये राज्य शासन द्वारा भू-खण्ड उपलब्ध कराने की योजना संचालित की जा रही है। इस योजना के तहत शासन द्वारा वित्तीय वर्ष 2010-11 के दौरान प्रदेश के छह जिलों को 30 लाख 25 हजार रुपये की राशि आवंटित की गई। ये जिले हैं- दमोह, ग्वालियर, जबलपुर, नरसिंहपुर, रतलाम और उमरिया।
आवंटित राशि में से दो लाख रुपये दमोह जिले के लिये, पौने सात लाख रुपये ग्वालियर, छह-छह लाख रुपये जबलपुर एवं नरसिंहपुर जिले, ढाई लाख रुपये रतलाम और सात लाख रुपये उमरिया जिले के लिये स्वीकृत किये गये हैं।

Source Rojgar aur Nirman